________________
१३२
अनुसन्धान-५८
जैन कथा साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण
प्रो. सागरमल जैन
कथा साहित्य का उद्भव उतना ही प्राचीन है, जितना इस पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व । चाहे साहित्यिक दृष्टि से कथाओं की रचना कुछ परवर्ती हो, किन्तु कथा-कथन की परम्परा तो बहुत पुरानी है। कथा साहित्य के लिए अंग्रेजी में Narrative literature शब्द प्रचलित है, अतः आख्यान या रूपक के रूप में जो भी कहा जाता है या लिखा जाता है, वह सभी कथा के अन्तर्गत आता है । सामान्य अर्थ में कथा वह है जो कही जाती है । किन्तु जब हम कथा साहित्य की बात करते हैं, तो उसका तात्पर्य है, किसी व्यक्ति या वस्तु के सम्बन्ध मे कथित या लिखित रूप में जो भी हमारे पास है, चाहे वह किसी भी भाषा में हो, कथा के अन्तर्गत आता है। यह सत्य है कि पूर्व में कथाओं को कहने की परम्परा मौखिक रूप में रही है, बाद में उन्हें लिखित रूप दिया गया । दूसरे शब्दों में पूर्व में कथाएं श्रुत परम्परा से चलती रही है, बाद में ही उन्हें लिखित रूप दिया गया है, यह बात जैन कथा साहित्य के सन्दर्भ में भी सत्य है । जैन परम्परा में भी कथाएं पहले अनुश्रुति के रूप में ही चलती रही है और यही कारण है कि लौकिक परम्पराओं के आधार पर उनमें समय-समय पर संक्षेपण, विस्तारण, परिशोधन, परिवर्तन एवं सम्मिश्रण होता रहा है । उनका स्वरूप तो उस समय स्थिर हुआ होगा, जब उन्हें लिखित स्वरूप प्रदान कर पुस्तकारूढ़ किया गया होगा।
मौखिक परम्परा के रूप में इन कथाओं ने समग्र भूमण्डल की यात्राएं की है और उनमें विभिन्न धर्मों एवं सामाजिक संस्कृतियों के माध्यम से आंशिक परिवर्तन और परिवर्धन भी हुआ है। विभिन्न देशों में प्रचलित कथाओं में भी आंशिक साम्य और आंशिक वैषम्य देखा जाता है, हितोपदेश
और ईसप की कथाएं इसका प्रमाण है । जैन कथाओं में भी इन लोककथाओं के अनेक आख्यान सम्मिलित हो गये है, जैसे- शेख चिल्ली की कथा। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि इन कथाओं के पात्र देव, मनुष्य और पशु पक्षी सभी रहे हैं। जहां तक जैन कथाओं का प्रश्न है उनके भी मुख्य