SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [90] 'जुगाइजिणिदचरियं' ना एक पद्यनो आधार वर्धमानसूरिए तेमनी 'जुगाईजिणिंदचरिय', वगेरे कृतिओमां पूर्व परंपराओनो ठीकठीक लाभ लीधो छ / 'जुगाइजिणिदचरिय' (रचनाकाल ई.स. ११०४)मा ऋषभनाथना धनसार्थवाह तरीकेना पहेला भवना वर्णनमां धन एक सवारे जे मंगळपाठक वडे उच्चारातुं मंगळ पद्य सांभळे छे ते नीचे प्रमाणे छे (मुद्रित पाठ अशुद्ध होईने शुद्ध करी आप्यो छे) : कुमुय-वणमसोहं पउम-संडं सुसोहं अमय-विगय-सोयं घूय-चक्काण चक्कं / पसिढिल-कर-जालो जाइ अत्थं मयंको उदयगिरि-सिरत्थो भाइ भाणू पसत्थो // (पृ. 4, पद्यांक 43) संस्कृत छाया : कुमुद-वनमशोभं पद्मषंडं सुशोभं अमद-विगत-शोकं घूक-चक्राणां चक्रम् // प्रशिथिल-कर-जालो याति अस्तं मृगांक उदयगिरि-शिर-स्थो भाति भानुः प्रशस्तः // आ नीचे आपेला माघकृत 'शिशुपालवध'ना जाणीता पद्य (11, ६४)नो ज प्राकृत अनुवाद छ : कुमुद-वनमपनि श्रीमदंभोज-खंडं त्यजति मुदमुलूकः प्रीतिमांश्चक्रवाकः / उदयमहिमरश्मिर्याति शीतांशुरस्तं हत-विधि-ललितानां ही विचित्रो विपाकः // वर्धमानसूरिए आनुं चोधुं चरण छोडी दीधुं छे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229639
Book TitleAngavijja ma Nirdishta Bharatiya Greek Kalin ane Kshatrap kalin Sikka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size322 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy