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कार्षापण मुद्राओं के अतिरिक्त नये कार्षापण भी ढाले जाने लगे थे । वे कई प्रकार के थे, जैसे उत्तम काहावण, मज्झिम काहावण, जहण्ण ( जधन्य) काहावण । अंगविज्जा के लेखक ने इन तीन प्रकार के कार्षापणों का और विवरण नहीं दिया। किन्तु ज्ञात होता है कि वे क्रमशः सोने, चांदी और तांबे के सिक्के रहे होंगे, जो उस समय कार्षापण कहलाते थे। सोने के कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए किन्तु पाणिनि सूत्र ४.३.१५३ ( जातरूपेभ्यः परिमाणे) पर 'हाटकं कार्षापणं' यह उदाहरण काशिका में आया है। सूत्र ५.२.१२० ( रूपादाहत प्रशंसयोर्यपू) के उदाहरणों में रूप्य दीनार, रूप्य केदार और रूप्य कार्षापण इन तीन सिक्कों के नाम काशिका में आये हैं। ये तीनों सोने के सिक्के ज्ञात होते हैं । अंगविज्जा के लेखक ने मोटे तौर पर सिक्कों के पहले दो विभाग किए काहावण और णाणक । इनमें से णाणक तो केवल तांबे के सिक्के थे। और उनकी पहचान कुषाणकालीन उन मोटे पैसों से की जा सकती है जो लाखोंकी संख्या में वेमतक्षम, कनिष्क, हुविष्क, वासुदेव आदि सम्राटों ने ढलवाये थे । णाणक का उल्लेख मृच्छकटिक में भी आया है, जहां टीकाकार ने उसका पर्याय शिवाङ्क टंक लिखा है । यह नाम भी सूचित करता है कि णाणक कुषाणकालीन मोटे पैसे ही थे, क्योंकि उनमें से अधिकांश पर नन्दीवृष के सहारे खडे हुए नन्दिकेश्वर शिव की मूर्ति पाई जाती है । णाणक के अन्तर्गत तांबे के और भी छोटे सिक्के उस युग में चालू थे जिन्हें अंगविज्जा में मासक, अर्धमासक, काकणि और अट्ठा कहा गया है। ये चारों सिक्के पुराने समय के तांबे के कार्षापण से संबंधित थे जिसकी तौल सोलह मासे या अस्सी रत्ती के बराबर होती थी । उसी तौल माप के अनुसार मासक सिक्का पांच रत्ती का, अर्धमासक ढाई रत्ती का, काकण सवा रत्ती की और अट्ठा या अर्धकाकणि उससे भी आधी तौल की होती थी । इन्हीं चारों में अर्धकाकणि पच्चवर ( प्रत्यवर) या सबसे छोटा सिक्का था । कार्पापण सिक्कों को उत्तम, मध्यम और जघन्य इन तीन भेदों में बांटा गया है । इसकी संगति यह ज्ञात होती कि उस युग में सोने, चांदी और तांबे के तीन प्रकार के नये कार्षापण सिक्के चालू हुए थे। इनमें से हाटक कार्षापण का उल्लेख काशिका के आधार पर कह चुके हैं। वे सिक्के वास्तविक थे या केवल गणित अर्थात् हिसाब किताब के लिये प्रयोजनीय थे इसका निश्चय करना संदिग्ध है, क्योंकि सुवर्ण कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए। चांदी के कार्षापण भी दो प्रकार के थे । एक नये और दूसरे मौर्य श्रृंग काल के बत्तीस रत्ती वाले पुराण कार्षापण । चांदी के कार्षापण कौन से थे इसका निश्चय करना भी कठिन है। संभवतः यूनानी
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