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( २ )
'इसी प्रकरण (९, २) में घन का विवरण देते हुए कुछ सिक्कों के नाम आये हैं, जैसे स्वर्णमासक, रजतमासक, दीनारमासक, णाणमासक, काहापण, क्षत्रपक, पुराण और सतेरक । इनमें से दीनार कुषाणकालीन प्रसिद्ध सोने का सिक्का था जो गुप्तकाल में भी चालू था । णाण संभवतः कुषाण सम्राटों का चलाया हुआ मोटा गोल घड़ी आकृति का तांबे का पैसा था जिसके लाखों नमूने आज भी पाये गये हैं । कुछ लोगों का अनुमान है कि ननादेवी की आकृति सिक्कों पर कुषाणकाल में बनाई जाने लगी थी और इसीलिए चालू सिक्कों को नापक कहा जाता था । पुराण शब्द महत्त्वपूर्ण है जो कुषाणकाल में चांदी की पुरानी आहत मुद्राओं (अंग्रेजी पंचमार्क्ड) के लिए प्रयुक्त होने लगा था, क्योंकि नये ढाले गये सिक्कों की अपेक्षा वे उस समय पुराने समझे जाने लगे थे यद्यपि उनका चलन बेरोक-टोक जारी था । हुविष्क के पुण्यशाला लेख में ११०० पुराण सिक्कों के दान का उल्लेख आया है । खत्तपक संज्ञा चांदी के उन सिक्कों के लिए उस समय लोक में प्रचलित थी जो उज्जैनी के शकवंशी महाक्षत्रपों द्वारा चालू किये गये थे और लगभग पहली शती से चौथी शती तक जिनकी बहुत लम्बी श्रृंखला पायी गई है। इन्हें ही आरम्भ में रुद्रदामक भी कहा जाता था । सतेरक यूनानी स्टेटर सिक्के का भारतीय नाम है । सतेरक का उल्लेख मध्यएशिया के लेखों में तथा वसुबन्धु के अभिधर्मकोश में भी आया हैं
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पृष्ठ ७२ पर सुवर्ण - काकिणी, मासक- काकिणी, सुवर्णगुञ्जा और दीनार का उल्लेख हुआ है । पृ. १८९ पर सुवर्ण और कार्षापण के नाम हैं। पृ. २१५-२१६ पर कार्षापण और णाणक, मासक, अद्धमासक, काकणी और अट्ठभाग का उल्लेख है। सुवर्ण के साथ सुवर्ण- माषक और सुवर्ण - काकिणी का नाम विशेष रूप से लिया गया है (पृ. २१६) ।
अध्याय ५६ में इसके अतिरिक्त कुछ प्रचलित मुद्राओं के नाम भी हैं, जो उस युग का वास्तविक द्रव्य घन था, जैसे काहावण (कार्षापण) और णाणक । काहावण या कार्षापण कई प्रकार के बताये गये हैं। जो पुराने समय से चले आते हुए मौर्य या शुंग काल के चांदी के कार्षापण थे उन्हें इस युग में पुराण कहने लगे थे, जैसा कि अंगविज्जा के महत्त्वपूर्ण उल्लेख से (आदिमूलेसु पुराणे बूया) और कुषाणकालीन पुण्यशाला स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है (जिसमें ११०० पुराण मुद्राओं का उल्लेख है) । पृ. ६६ पर भी पुराण नामक कार्षापण का उल्लेख है । पुरानी
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