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अनुसन्धान-५९
वर्ण-विद्वेष का खुला उदाहरण है, वहाँ पउमचरियं का शम्बूक वध अनजान में हुई एक घटना मात्र है । पुनः कवि ने राम के चरित्र को उदात्त बनाये रखने हेतु शम्बूक और रावण का वध राम के द्वारा न करवाकर लक्ष्मण के द्वारा करवाया है । बालि के प्रकरण को भी दूसरे ही रूप में प्रस्तुत किया गया है । बालि सुग्रीव को राज्य देकर संन्यास ले लेते है । दूसरा कोई विद्याधर सुग्रीव का रूप बनाकर उसके राज्य एवं अन्तःपुर पर कब्जा कर लेता है । सुग्रीव राम की सहायता की अपेक्षा करता है और राम उसकी सहायता कर उस नकली सुग्रीव का वध करते है । यहाँ भी सुग्रीव के कथानक में से भ्रातृ-पत्नी से विवाह की घटना को हटाकर उसके चरित्र को उदात्त बनाया गया है । इसी प्रकार कैकेयी भरत हेतु राज्य की मांग राम के प्रति विद्वेष के कारण नहीं, अपितु भरत को वैराग्य लेने से रोकने के लिये करती है। राम भी पिता की आज्ञा से नहीं अपितु स्वेच्छा से ही वन को चल देते हैं ताकि वे भरत को राज्य पाने में बाधक न रहे । इसी प्रकार विमलसूरि के पउमचरियं में कैकेयी के व्यक्तित्व को भी ऊँचा उठाया गया है । वह न तो राम के वनवास की मांग करती है और न उनके स्थान पर भरत के राज्यारोहण की । वह अन्त में संन्यास ग्रहण कर मोक्षगामी बनती है। न केवल यही, अपितु सीताहरण के प्रकरण में भी मृगचर्म हेतु स्वर्णमृग मारने के सीता के आग्रह की घटना को भी स्थान न देकर राम एवं सीता के चरित्र को निर्दोष और अहिंसामय बनाया गया है। रावण के चरित्र को उदात्त बनाने हेतु यह बताया गया है कि उसने किसी मुनि के समक्ष यह प्रतिज्ञा ले रखी थी कि मैं किसी परस्त्री का, उसकी स्वीकृति के बिना शील भङ्ग नहीं करूँगा । इसलिये वह सीता को समझाकर सहमत करने का प्रयत्न करता रहता है, बलप्रयोग नहीं करता है। पउमचरियंमें मांस-भक्षण के दोष दिखाकर सामिष भोजन से जन-मानस को विरत करना भी जैनधर्म की अहिंसा
की मान्यता के प्रसार का ही एक प्रयत्न है । ग्रन्थ में वानरों एवं राक्षसों को विद्याधरवंश के मानव बताया गया है, साथही यह भी सिद्ध किया गया है कि वे कला-कौशल और तकनीक में साधारण मनुष्यों से बहुत बढ़े-चढ़े थे । वे पादविहारी न होकर विमानों में विचरण करते थे । इस प्रकार इस ग्रन्थ में विमलसूरि ने अपने युग में प्रचलित रामकथा को अधिक युक्तिसंगत