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अनुसन्धान-५९
यापनीय आचार्य हरिषेण एवं स्वयम्भू आदि ने भी इस अतिशय का
उल्लेख किया है। (५) पउमचरियं (२।८२) में तीर्थङ्कर नामकर्म प्रकृति के बन्ध के बीस कारण
माने है । यह मान्यता आवश्यकनियुक्ति और ज्ञाताधर्मकथा के समान ही है । दिगम्बर एवं यापनीय दोनों ही परम्पराओं में इसके १६ ही कारण माने जाते है । अतः इस उल्लेख को श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष
में एक साक्ष्य कहा जा सकता है । (६) पउमचरियं में मरुदेवी और पद्मावती - इन तीर्थङ्कर माताओं के द्वारा
१४ स्वप्न देखने का उल्लेख है ।२८ यापनीय एवं दिगम्बर परम्परा १६ स्वप्न मानती है । इसी प्रकार इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के सम्बन्ध में प्रबल साक्ष्य माना जा सकता है । पं. नाथूराम जी प्रेमी ने यहाँ स्वप्नों की संख्या १५ बतायी है ।२९ भवन
और विमान को उन्होंने दो अलग-अलग स्वप्न माना है । किन्तु श्वेताम्बर परम्परा में ऐसे उल्लेख मिलते है कि जो तीर्थङ्कर नरक से आते है, उनकी माताएँ भवन और जो तीर्थङ्कर देवलोक से आते है उनकी माताएँ विमान देखती है। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है अतः संख्या चौदह ही होगी । (आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति पृ. १०८) । स्मरण रहे कि यापनीय रविषेण ने पउमचरियं के ध्वज के स्थान पर मीनयुगल को माना है। ज्ञातव्य है कि प्राकृत ‘झय' के संस्कृत रूप 'ध्वज' तथा झष (मीन-युगल) दोनों सम्भव है। साथ ही सागर के बाद उन्होंने सिंहासन का उल्लेख किया है और विमान तथा भवन को अलगअलग स्वप्न माना हैं यहा यह भी ज्ञातव्य है कि स्वप्न सम्बन्धी पउमचरियं की यह गाथा श्वेताम्बर मान्य 'नायाधम्मकहा' से बिल्कुल
२८. पउमचरियं, ३/६२, २१/१३ ।
(यहाँ मरुदेवी ओर पद्मावती के स्वप्नों में समानता है, मात्र मरुदेवी के सन्दर्भ में 'वरसिरिदाम' शब्द आया है, जबकि पद्मावती के स्वप्नों में 'अभिसेकदास' शब्द
आया है - किन्तु दोनों का अर्थ लक्ष्मी ही है ।) २९. जैन साहित्य और इतिहास (नाथूराम प्रेमी), पृ. ९९