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________________ जून - २०१२ समान है ।३० अतः यह अवधारणा भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के सम्बन्ध में प्रबल साक्ष्य है। (७) पउमचरियं में भरत और सगर चक्रवर्ती की ६४ हजार रानियों का उल्लेख मिलता है३१, जबकि दिगम्बर परम्परा में चक्रवर्तीयों की रानियों की संख्या ९६ हजार बतायी है ।३२ अतः यह साक्ष्य भी दिगम्बर और यापनीय परम्परा के विरुद्ध है और मात्र श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में जाता है। (८) अजित और मुनिसुव्रत के वैराग्य के कारणों को तथा उनके संघस्थ साधुओं की संख्या को लेकर पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में मत वैभिन्य है ।३३ किन्तु ऐसा मतवैभिन्य एक ही परम्परा में भी देखा जाता है अतः इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का सबल साक्ष्य नहीं कहा जा सकता है। (९) पउमचरियं और तिलोयपण्णत्ति में बलदेवों के नाम एवं क्रम को लेकर मतभेद देखा जाता है, जबकि पउमचरियं में दिये गये नाम एवं क्रम श्वेताम्बर परम्परा में यथावत् मिलते हैं ।३४ अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के पक्ष में एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । यद्यपि यह स्मरण रखना होगा कि पउमचरियं में भी राम को बलदेव ही कहा गया है । (१०) पउमचरियं में १२ देवलोकों का उल्लेख है जो कि श्वेताम्बर परम्परा की मान्यतानुरूप है ।३५ जबकि यापनीय रविषेण और दिगम्बर परम्परा के अन्य आचार्य देवलोकों की संख्या १६ मानते है अतः इसे भी ग्रन्थ के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का प्रमाण माना जा सकता है । ३०. णायधम्मकहा (मधुकर मुनि) प्रथम श्रुतस्कथं, अध्याय ८, २६ । ३१. पउमचरियं ४/५८, ५/९८ ३२. पद्मपुराण (रविषेण), ४/६६, २४७ । ३३. देखें पउमचरियं २१/२२, पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २२ फुटनोट- ३ । तुलनीय-तिलोयपण्णत्ती, ४/६०८ ३४. पउमचरियं, इण्ट्रोडक्सन पेज २१ । ३५. पउमचरियं, ६५/३५-३६ और १०२/४२-५४
SR No.229626
Book TitlePaum Chariyam Ek Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size122 KB
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