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जून - २०१२
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उसे किसी भी स्थिति में दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ सिद्ध नहीं किया जा सकता
क्या पउमचरियं श्वेताम्बर परम्परा का ग्रन्थ है।
आयें अब इसी प्रश्न पर श्वेताम्बर विद्वानों के मन्तव्य पर भी विचार करें और देखें कि क्या वह श्वेताम्बर परम्परा का ग्रन्थ हो सकता है ?
पउमचरियं के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं - (१) विमलसूरि ने लिखा है कि 'जिन' के मुख्य से निर्गत अर्थरूप वचनों
को गणधरों ने धारण करके उन्हें ग्रन्थरूप दिया-इस तथ्य को मुनि कल्याणविजय जी ने श्वेताम्बर परम्परा सम्मत बताया है । क्योंकि श्वे.
परम्परा की नियुक्ति में इसका उल्लेख मिलता है ।२६ (२) पउमचरियं (२/२६) में महावीर के द्वारा अँगूठे से मेरुपर्वत को कम्पित
करने की घटना का भी उल्लेख हुआ है, यह अवधारणा भी श्वेताम्बर
परम्परा में बहुत प्रचलित है ।। (३) पउमचरियं (२/३६-३७) में यह भी उल्लेख है कि महावीर केवलज्ञान
प्राप्त करने के पश्चात् भव्य जीवों को उपदेश देते हुए विपुलाचल पर्वत पर आये, जबकि दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर ने ६६ दिनों तक मौन रखकर विपुलाचल पर्वत पर अपना प्रथम उपदेश दिया । डा. हीरालाल जैन एवं डा. उपाध्ये ने भी इस कथन को श्वेताम्बर
परम्परा के पक्ष में माना है ।२७ (४) पउमचरियं (२/३३) में महावीर का एक अतिशय यह माना गया है
कि वे देवों के द्वारा निर्मित कमलों पर पैर रखते हुए यात्रा करते थे। यद्यपि कुछ विद्वानों ने इसे श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में प्रमाण माना
है, किन्तु मेरी दृष्टि में यह कोई महत्त्वपूर्ण प्रमाण नहीं कहा जा सकता। २६. 'जिणवरमुहाओ अत्थो सो गणहेरहि धरिउं । आवश्यक नियुक्ति १/१० २७. देखे -- पद्मपुराण (आचार्य रविषेण), प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी, सम्पादकीय,
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