________________ 110 अनुसन्धान-५८ विहिया जीवाण तए इण्हि ता सहसु थिरचित्तो // 4 // नरवरकम्मनिउत्तेणं जीवा पुरा बंधवहणमरणाई / पाणासणाइछेओ जो विहिओ तव्विवागो य // 5 // दीणाणाहुद्धरणं ओसहअसणाइएहि मुणिदाणं / जइ हुज्ज पुरा विहियं ता तुह किं हुज्ज इय पीडा // 6 // रे जीव अन्नजम्मे समज्जियं जं तए असइकम्मं / तस्स विवागं सम्मं इण्हि विसयेसु सुहभावो // 7 // सम्ममहियासणाए अणेगभवसंचियं पि जं कम्मं / नासिज्जइ सुहभावा पवणेणं पेहपडलं व // 8 // जइ सविवेओ ण सहसि अज्ज तुमं जीव ! वेयणं विवसो / ता दुस्सहो भविस्सइ भवंतरे कम्मपरिणामो // 9 // अइदारुणगुरुवेयणअभिभूएणावि उत्तमनरेण / अट्टज्झाणं मुत्तुं धीरत्तं होइ कायव्वं // 10 // गयसुकुमाल-सुकोसल-सणंकुमाराइ-धीर-पुरिसेहिं / किं न सुया जह सोढा जीयंतकरीउ वियणाउ // 11 // धन्ना खंदगसीसा मेयज्ज-चिलाइपुत्तपभिईया / गुरुवेयणविहुरा किं हु जे सुद्धज्झाणमावन्ना // 12 // जेणेव तिक्खदुक्खं संसारियसोगसंभूयं / तेणं चिय सप्पुरिसा पडिवन्ना परमपयमग्गं // 13 // अहवा खित्तपयाणेण जणा सहाय मग्गंति सस्सलवणत्थं / तुज्झ महारोगाई जाओ कम्मक्खयसहाओ // 14 // इय भावणाइ अट्टं वज्जिय तं होसु धम्मझाणरओ / जेण हयसयलकम्पो सिवसुक्खधणेसरो होसि // 15 // इति संवेगकुलकं समाप्तम् / / C/o. प्राकृत भारती अकादमी 13-A, मेन गुरु नानक पथ, मलवीय नगर, जयपुर-१७