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________________ September-2006 (ब) 'निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्' यह कृष्ण ने अर्जुन को दिया हुआ आदेश या प्रेरणा है । जैन दर्शन भी मानता है कि हमें सुख-दुख आदि देने में विविध निमित्त होते हैं । किंबहुना ? जीव को विशिष्ट गति में जन्म, माता-पिता, सगे-संबंधी, स्वजन-मित्र-शत्रु, परिस्थिति (हालात) इन्हीं सुख-दुःखों को अनुभूति के लिए निमित्तमात्र होते हैं । किसी की मृत्यु में निमित्त बनने की यह प्रेरणा जैन दर्शन की दृष्टि से सरासर गलत है। 'इसको तो मृत्यु आनेवाली ही है, मैं सिर्फ निमित्तमात्र हूँ' ऐसा गलत संदेश अगर तत्त्वज्ञान के आधार से जाता है तो दुनिया में तहलका मच सकता है। वैयक्तिक दृष्टि से तो हरेक आचारसंपन्न व्यक्ति ने दूसरों को दुःख देना या मृत्यु देने के विचार से सदैव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए । जैन दर्शन की दृष्टि से कीट-पतंग-वनस्पति को भी दुःख नहीं पहुचाना है,२२ तो मानव-हत्या, विचार के आस-पास भी नहीं होनी चाहिए। अर्जुन को क्षत्रियधर्म का पालन करने का आवाहन करना व्यवहार नयसे तो ठीक है, परंतु दूसरों के वध के लिए निमित्तमात्र होने की प्रेरणा देना जैन दर्शन से बिलकुल सुसंगत नहीं है। (८,९) भयग्रस्त अर्जुन का अद्भुत विराट पुरुष को बारबार वंदन; अपने पूर्व-वर्तन की लज्जा तथा पूर्वरूप में आने की विनती गीता में श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के चार पहलुओं का दर्शन इस ग्यारहवें अध्याय में होता है। यही इस अध्याय की विशेषता है । इस प्रसंग तक कृष्ण अर्जुन का भाई, सखा, सारथी तथा मार्गदर्शक है । इस अध्याय में प्रथम कृष्ण सहस्र मस्तक, बाहु, मुख, नेत्रवाला विराट पुरुष बन जाता है । काल के रौद्र रूप में भी सामने आता है । विस्मयचकित और भीतिग्रस्त अर्जुन के बार-बार वंदन तथा विनती से सौम्य चतुर्भुज विष्णरूप में दिखाई देता है। थोड़ी देर बाद दो हाथवाले वासुदेव कृष्ण के रूप में अवस्थित हो जाता है । इस अध्याय में जितनी अद्भुतता और रोमांचकता है, वह जैन दृष्टि से परखने के पहले हम इसका सोचविचार करेंगे कि जैन इतिहास में और आगमों में इस प्रकार के अद्भुत प्रसंग आये हैं या नहीं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229573
Book TitleShrimad Bhagdwadgita ke Vishwarup Darshan ka Jain Darshanik Drushti se Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size423 KB
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