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March-2004
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श्री आदिनाथ वीनती पूजा
सं. डो. रसीला कडीआ
प्रस्तुत कृतिनी नकल ला.द.भा.विद्यामन्दिर, अमदावादना त्रूटक पुस्तक परथी करी छे, अने श्री लक्ष्मणभाई भोजके आ कृतिने उकेलवामां मार्गदर्शन आप्युं छे ते बदल तेमनी तथा संस्थानी हुँ ऋणी छु.
एक ज पत्रनी आ प्रत छे. आ प्रतमां लेखन संवत आपवामां आवी नथी पण लेखनरीति उपरथी १९मो शतक अनुमानी शकाय तेम छे. कृतिने अन्ते 'पं. सुधाभूषणशिष्येणालेखि०' जणाव्युं छे. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिना श्रीजिनमाणिक्य अने तेमना शिष्य अनन्तहंसे आ वीनती रची होवा, २२मी कडीमा उल्लेखायुं छे. गच्छपति रत्नशेखरसूरिना शासनमां आ रचेल छे.
कृतिमां लखाण घणुं ज छेकछाकवाळु छे. केटलेक स्थळे वर्णव्यत्यय थयो छे, अनुस्वारोनो उपयोग घणो छे. २१मी कडीने अन्ते 'इति श्री आदिनाथ वीनती पूजा' लख्या बाद अने ए ज हस्ताक्षरमां नीचे तथा हांसियामा २२मी अने २९मी कडीओ आपेली छे जेने लिप्यन्तरमां में सळंग लीधी छे.
प्रस्तुत कृतिमां कविओ शत्रुजय यात्रा करीने श्री आदिनाथ भगवानने भेटवानी कविनी तीव्र उत्कंठा प्रगट करी छे. प्रभुप्रतिमा वर्णन कर्यु छे तेमां आ भाव सुपेरे प्रगट थाय छे. अहीं कविओ सिद्धाचल पर सिद्धिने वरेलां सौने याद कर्या छे. पछी पोते पण प्रभु विरहमां केवा झूरे छे अने 'भवे भवे तेमने भेटवा आतुर छे ते तेना भाव सदृष्टान्त वर्णनमां प्रगट थाय छे. 'क्यु न भये हम मोर, विमलगिरि' ए जाणीती स्तवनपंक्तिनी पेठे कवि अहीं पण विमलगिरि पर वसतां अने नित्य सुप्रभाते प्रभुपदे नमतां पंखीओनां जीवननी कृतार्थता-धन्यताने स्मरे छे. पोते पण वादळने जोईने नृत्य करतां मोरनी पेठे, चंद्र अने चकोरनी पेठे शेर्बुज शिखरने जोईने हैये हरखे छे.
'श्रीआदिनाथ वीनती' नामक कृतिओ अनेक उपलब्ध छे. तेमां आ कृति उमेरारूप छे अने अभ्यासीओने रस पडे तेवी छे.
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