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अनुसन्धान-४०
उञ्छव्रत में धान्यकण या धान्यबीज खेतों से इकट्ठा करते थे ।२१ जो धान्यकण या बीज भुट्टों से खेत में पड़कर गिरे हुए हैं वे एक-एक करके चुने जाते थे ।२२ इस व्रत के धारक लोग पतित तथा परित्यक्त धान्य कण भी इकट्ठा करते थे ।२३ इसके लिए क्षेत्र स्वामी की अनुमति नहीं मानी गई थी ।२४ खलिहान में बचे हुए धान्यकण भी लेने की विधि दी है ।२५ धान जब खेत से बाजार तक ले जाया जाता है तब भी बहुत से धान्यकण गिरते हैं । इसलिए रास्ते से या बाजार से भी इकट्ठे किये जा सकते थे।२६ एक जगह से कितने धान्यकण इकट्ठे किये जायें इसका भी प्रमाण निश्चित किया है । एक एक धान्यकण चुनके एक जगह से एक मुट्ठी धान्य ही इकट्ठा किया जाता था । इसके लिए कुन्ताग्र२७ गुटक२८ इन शब्दों का प्रयोग किया गया है, अनेक जगहों में अल्पमात्रा में उञ्छग्रहण करने का विधान है ।२९ इसका कारण यह है कि किसी को भी इस ग्रहण से पीडा न हो।३० चरक संहिता में शोधनी से धान्यकण इकट्ठे करने का उल्लेख है ।३१ उञ्छवृत्ति से इकट्ठे किये धान्य का पिष्ठ बनाया जा सकता था तथा पानी में मिलाकर काँजी वगैरह बनाई जाती थी ।३२ रसास्वाद के लिए उसमें नमक आदि चीजें २१. मनुस्मृति टीका (सर्वज्ञानारायना) १०.११०; कौटिलीय अर्थशास्त्र अध्याय-४५,
पृष्ठ ६१ २२. काशिका-४.४.३२, ६.१.१६०; अपरार्क ओफ याज्ञवल्क्य स्मृति .. १६७.३;
स्मृतिचन्द्रिका - 1 451.16 २३. दण्डविवेक - १(४४.४); अपरार्क ऑफ याज्ञवल्क्यस्मृति-१६७.३; स्मृतिचन्द्रिका
- I 451.16 २४. मनुस्मृति " टीका (सर्वज्ञानारायना) १०.११२ २५. दण्डविवेक - १(४४.४); चन्द्रवृत्ति-१.१.५२ २६. मनुस्मृति - टीका (सर्वज्ञानारायना) ४.५, भागवद्पुराण- ७.११.१९ २७. पाण्डवचरित-१८.१४३ २८. दीपकलिका ऑन याज्ञवल्क्यस्मृति - १.१२८ (१७.१७) २९. हारलता - ९.८.९; अभयदेव-स्थानांगटीका - २१३अ. १२ ३०. मनुस्मृति - ४.२ ३१. चरकसंहिता - ८.१२.६६(८५) ३२. शिवपुराण - ३.३२.६; आश्वमेधिकपर्व - ९३.९
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