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जुलाई - २००७
रामायण में यद्यपि उञ्छवृत्ति के सन्दर्भ अत्यल्प हैं तथापि इस व्रत की दुष्करता उसमें अधोरेखित की गई है ।" उच्छवृत्ति का आचरण करनेवाले को 'उच्छशील' कहते हैं।' लेकिन 'उच्छशिल' ऐसा भी शब्द प्रयोग देखा जाता है ।' 'उञ्छ' का मतलब है मार्ग में या खेत में गिरे हुए धान्य कण इकट्ठा करना और 'शिल' का अर्थ है धान्य के भुट्टे इकट्ठे करना । इन दोनों को मिलकर 'ऋत' संज्ञा दी है ।" उच्छजीविका" उञ्छजीविकासम्पन्न १२ उञ्छधर्मन् उच्छवृत्ति १४ आदि शब्द प्रयोग उन लोगों के बारे में आये हैं जिन्होंने धान्यकण इकट्ठा करके उन पर उपजीविका करने का व्रत स्वीकार किया है ।
उञ्छवृत्ति व्रत विप्र, १५ ब्राह्मण तथा गृहस्थ१७ स्वीकार करते हैं । इसका मतलब यह हुआ कि गृहस्थाश्रमी लोग यह व्रत धारण करते थे । आश्वमेधिकपर्व में एक विप्र की पत्नी, पुत्र तथा पुत्रवधू के द्वारा भी यह व्रत ग्रहण करने का उल्लेख है । १८ मुनि १९ तथा तापस" भी इस व्रत को ग्रहण करते थे । अर्थात् वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम में भी उच्छवृत्ति के द्वारा उपजीविका करने का प्रघात था ।
७.
८.
९.
अयोध्याकाण्ड - २.२१.२ (ड
अमरकोश
२, ९, २
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वाराहगृह्यसूत्र सांख्यायनगृह्यसूत्र - ४.११.१३
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९.२; भागवद्पुराण - ७.११.१९; मनुस्मृति - ४.५;
१०. मनुस्मृति - ४.५
११. लिङ्गानुशासन, हेमचन्द्र - ११३.१६, परमानन्दनाममाला ३६९९ : स्कन्दपुराण
३.२.३३
१२. अभयदेव - स्थानांग टीका २६७५.५
१३. आरण्यकपर्व - ३.२४६.२१
१५. आश्वमेधिकपर्व - १४.९३.७; विष्णुधर्मोत्तरपुराण- ३.२३७.२८
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१६. महाभाष्य
१७. शान्तिपर्व - १२.१८४.१८ १८. आश्वमेधिकपर्व - अध्याय ९३
१९. आरण्यक पर्व - ३.२४६.१९, शब्दरत्न समन्वयकोश- ७४.७; ३००.१७;
सांख्यायनगृह्यसूत्र - ४.११.१३ शान्तिपर्व - ३६३-१,२
१.४.३; ३१३.१३
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२०. बृहत्कथाकोश- ६६.३४
१४. वैखानसधर्मसूत्र - १.५.५
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