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मार्च २००८
प्रोफेसर डाक्टर कौलेट काइया (Colette Caillat) ने पाश्चात्य परम्परा को सजीव रखा और अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से निरन्तर विकसित किया। गुणग्राह्यता तथा जैन. साहित्योपासना दोनों ही दृष्टियों से श्रीमती काइया का जीवन आदर्श विदुषी और महिला का जीवन रहा है। उनका जन्म पेरिस के पास एक छोटे शहर में १५ जनवरी १९२१ में हुआ और अपनी छियासवी वर्षगांठ के दिन १५ जनवरी २००७ में उनका देहावसान हो गया ।
उनके माता पिता दोनों सरकारी नौकरी करते थे। उनका पूरा विश्वास था कि लडकियों का जीवन भी वैयक्तिक वेतन के बिना नहीं चल सकता। नियमित कार्यवाही से ही स्त्री को स्वतन्त्रता मिल सकती है । आरम्भ में श्रीमती काईया ने सोर्बोन विश्वविद्यालय में लैटिन व ग्रीक योरोपीय शास्त्रीय भाषाओं का अध्ययन किया । इन विषयों की उच्चतम परीक्षाओं में सफलता के बाद उन्होंने माध्यमिक शिक्षालयों में अध्यापन किया । इसी बीच श्रीमती काइया का विवाह एक भौतिक वैज्ञानिक से हुआ ।
पढाते-पढाते उन्होंने सोर्बोन विश्वविद्यालय में संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं का अध्ययन प्रारंभ किया । इस समय लैटिन व ग्रीक भाषाओं के विद्यार्थियों को ज्ञान हुआ कि इन भाषाओं का संस्कृत से पास का सम्बन्ध है। परिणामस्वरूप वे भी भारतीय शास्त्रीय भाषा संस्कृत की ओर आकृष्ट हुए । यद्यपि ऐसे विद्यार्थियों की संख्या सीमित रही है। प्रोफ़ेसर लुइ रनु और प्रोफेसर जूल ब्लोक (Jules Bloch, 1880-1953) श्रीमती काइया के दो मुख्य गुरु थे । प्रोफेसर ब्लोक के विद्यार्थी न केवल संस्कृत बल्कि पालि-प्राकत तथा मराठी भाषाएं भी सीखते थे। इसी प्रकार श्रीमती काइया की रुचि भी भारतीय भाषाओं में बढ़ती गई। पाली-प्राकृत नामव्युत्पत्ति के विषय पर उन्होंने संशोधन प्रारम्भ किया। किन्तु जैन धर्म से परिचित बिना प्राकृत साहित्य कौन पढ सकता है। उस समय फ्रांस में जैन धर्म का विशेषज्ञ न होने के कारण प्रोफेसर रनु ने श्रीमती काइया को हैमबुर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वाल्टर शूब्रिग (Walther Schubring, 1881-1969) के पास अध्ययनार्थ भेज दिया। प्रोफेसर शूब्रिग जैन आगम साहित्य और प्राकृत विद्या के शीर्षस्थ विद्वान थे। विशेषत: वे आचाराङ्गसूत्र, सूत्रकृताङ्गसूत्र तथा छेदसूत्रों का अध्ययन, अनुवाद व सम्पादन करते थे । हैमबुर्ग में ही श्रीमती काइया प्रोफेसर अल्स्दोर्फ (Ludwig Alsdorf, 1904
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