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अनुसन्धान ४३
फ्रांस में जैन धर्म व साहित्य . स्वर्गीय प्रोफेसर डाक्टर श्रीमति कौलेट काइया का योगदान
१५-१-१९२१ - १५-१-२००७ श्रद्धाञ्जलि
नलिनी बलवीर फ्रांस में जैन धर्म प्रचलित धर्म नहीं है । भारतीय प्रवासियों की संख्या यहा सीमित है और उनमें जैनियों का भाग कम है। इंगलैंड और अमेरिका की तरह अभी तक यहाँ जैन मन्दिर भी नहीं हैं । पर विशेषज्ञों के कृतित्व के कारण जैन धर्म और साहित्य भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग माना जाता है और विश्वविद्यालयों में उनका अध्ययन और अध्यापन होता है । बीसवीं शती के आरम्भ में फ़्रांसीसी विद्वान गेरिनो (Guérinot) ने इस विषय पर संशोधन किया की । तत्कालीन पश्चिमी देशों के गेरिनो समान विद्वानों ने
आचार्य श्रीविजयधर्मसूरि (1868-1922) के साथ पत्रव्यवहार किया था । पिछली शती के विश्वविख्यात भारतीयज्ञ इण्डोलोजिस्ट प्रोफेसर लुई रनु (Louis Renou, 1896-1966) जैन धर्म व साहित्य के विशेषज्ञ नहीं थे फिर भी उनका जैनिज़्म (Jainism) नामका लेख आज भी प्रशंसनीय है । भारत के यात्रा के समय १९४८ प्रोफ़ेसर रनु की तेरापन्थी आचार्य श्रीतुलसी (1914-1997) से भेंट हुई 1 इन आचार्य के व्यक्तित्व और तेरापन्थ संघव्यवस्था से बहुत प्रभावित होकर प्रोफेसर रनु ने रिपोर्ट जैसा एक लेख प्रकाशित किया जो पश्चिम में तेरापन्थ के विषय पर सब से प्रथम था । 1. A.J. Sunavala, Vijaya Dharma Suri. His Life and Work, Cambridge, 1922;
Colette Caillat & Nalini Balbir, Jaina Bibliography. Books and Papers published in French or by French scholars from 1906 to 1981, Sambodhi
10, April 1981, pp. 1-41. 2. In : Religions of Ancient India, London, 1953; reprint, Delhi, Munshiram
Manoharlal, 1971. 3. Louis Renou, Une secte religieuse dans l'Inde contemporaine, Etudes,
268, 1951, pp. 343-351; English version: A Religious Sect in Contemporary India, Eur-Asia, Calcutta, 6, 1-2, January February 1952, pp. 1663-1666 and 1675.
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