________________ अनुसन्धान 43 के विश्वविद्यालय में 1960-66 संस्कृत और तुलनात्मक व्याकरण की शिक्षा देती थीं / सन् 1966 में प्रोफेसर रनु के आकस्मिक निधन के बाद वे सोर्बोन विश्वविद्यालय में भारतविद्या की प्रोफेसर नियुक्त हुईं और 1989 तक सेवानिवृत्त होने के समय तक इस पद पर बनी रहीं / दर्जनों विद्यार्थियों को उन्होंने भारतीय संस्कृति और पालि-प्राकृत भाषाओं की शिक्षा दी और भारतीयपरता का पथप्रदर्शन किया / विविध छात्रों को पी.एच.डी. की शोध उपाधि के लिए निर्देशन किया / प्रोफ़ेसोर् श्रीमती काइया ने विश्व के विविध धर्मसम्बन्धी प्रकाशनों मे अनेक निबन्धों और प्रकृतिविषयक जैन घोषणा के अनुवाद से फ़्रांस की सामान्य जनता को जैन धर्म से अवगत किया / उस क्षेत्र की अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ होने के नाते फ्रांस के बाहर भी प्रकाशित विश्वकोशों और सामान्य ग्रन्थों में उन्होंने अनेक लेख प्रकाशित किए। उदाहरणतः देखिए कौलेट काइया, ए. एन. उपाध्ये और बाल पाटिल द्वारा प्रकाशित जैनिज्म् (Jainism; देहली 1974-75) भारत विद्या के विविध विषयो पर प्रकाशित पुस्तकों की समर्थक और उदारतापूर्ण समालोचना करना श्रीमती काइया के कृतित्व का महत्वपूर्ण भाग था / फ्रांस की एसियाटिक सोसाइटी की पत्रिका में (Journal Asiatique) उन्होंने नियमित रूप से महत्वपूर्ण ग्रन्थसूचियों के संकलन प्रकाशित किए। जर्मन विशेषज्ञ प्रोफेसर वाल्टर शूब्रिग और भारतीय विद्वान मुनि पुण्यविजयजी के देहावसान पर उन्होंने महानुभावों पर मार्मिक लेख छापे / विद्वत्ता, कर्तव्यपरायणता और सरल स्वभाव के कारण श्रीमती काइया शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में प्रसिद्ध हो गयीं / भारत के जैन संस्थानों और विदेशी संस्थानों में सम्मान पुरस्कारों से अलंकृत हुईं / श्रीमती काइया का जीवन और अथक शोध कृतित्व जैन धर्म और साहित्य के ही नहीं अपितु विश्वसेवापरक स्वभाव मानवता के निरन्तर आदर्श रहेंगे। C/o. सोन नुवेल विश्वविद्यालय पेरिस, फ्रांस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org