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अनुसन्धान ४९
गंगदास कृत श्री आचार्यजीना बार मसवाडा
सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ
ई.स. नी १३मी सदीथी लई ई.स. नी १९मी सदी सुधी जैन-जैनेतर बन्ने कविओए खेडेलो मध्यकालीन साहित्यनो एक प्रकार ते बारमासा साहित्य.
बारमासा काव्यमां मुख्यत्वे विरह अने मिलननां शारिक भावोने वर्णववामां आवे छे. बारे महिनानी नैसर्गिक परिस्थितिथी चित्त पर थतो लागणीओनुं वर्णन करवू ते ज आ काव्यनो प्राण छे. प्रस्तुत कृतिमां पण तेवा ज भावो वर्णवाया छे. परंतु माता अने पत्र वच्चेनो दीक्षा माटेनो वार्तालाप ते काव्यने शृङ्गार प्रधान न करता वैराग्य-प्रधान बनावे छे.
माता शारदाने नमस्कार करी कवि जसवंतऋषिना गामर्नु नाम, मातापितानुं नाम, स्वप्नदर्शनी पुत्रनो जन्म, पुत्रनुं नामकरण, पुत्रनी संसारत्यागनी अभिलाषा इत्यादिक वर्णन पीठिका रूपे बांधी मागसर मासथी लई बारे मासनुं वर्णन शरु करे छे. जुदा जुदा महिनाना उपभोगनुं वर्णन करी माता सहोदरा पुत्रने संसारत्याग न करवा समजावे छे. ज्यारे पुत्र जसवंत ते ज भोगोने धर्मतत्व साथे घटाडी माता पासे संयमती अनुमति मागे छे. अन्ते काव्यनी पूर्तिमा कवि जसवंतजीनी दिक्षानी संवत, पोतानी थोडी गुरुपरम्परा, काव्य रचनानी संवत तथा पोताना नामने दर्शावी काव्य पूर्ण करे छे.
प्रस्तुत काव्यमां लोकागच्छना रूपऋषिनी परम्परामां थयेला वरसिंहऋषिना शिष्य जसवंत ऋषिनी दिक्षानुं वर्णन कर्यु होई कर्ता तेमनी ज परम्पराना कवि होवानुं अनुमान करी शकाय. लोंकागच्छनी परम्परामां गंगमुनि (गांगजी) नामना ऋषि थया छे. जेमनी परम्परा नीचे मुजब छे.
रूपऋषि - जीवऋषि, जसवंतऋषि, रूपसिंहऋषि - दामोदरऋषि - अने कर्मसिंहऋषि - केशवऋषि - तेजसिंहऋषि - कान्हऋषि - नाकरऋषिदेवजीऋषि - नरसिंहऋषि - लखमीसिंहऋषि - गांगजी ऋषि. तेमणे संवत
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