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'शब्दार्थ-चन्द्रिका' (पं. हंसविजय विरचित)
-सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय सत्तरमा सैकामां थयेला कविवर पंडित मुनिश्री हंसविजयजीए रचेली "शब्दार्थचन्द्रिका" नामे व्याकरणविषयक लघु रचना अत्रे यथामति संपादन करवापूर्वक प्रस्तुत छे. आ कृतिनी कर्ताए स्वहस्ते लखेली एक प्रति-६ पत्रोनी मारा पूज्य गुरुमहाराजश्रीना अंगत पुस्तक संग्रहमांथी प्राप्त थई छे, तेना परथीं संपादन करेल छे. अन्य भंडारोमा आनी बीजी प्रतिओ पण प्राप्त थाय छे, परंतु कर्ताना स्वहस्तनी प्रति उपलब्ध होवाथी अन्य प्रतिनो उपयोग को नथी.
सारस्वत व्याकरणना प्रथम बे पद्य उपर ग्रंथकारे "संहिता च पदं चैव" ए प्रसिद्ध पद्य -आधारित विशद विवरण आ रचनामां रजू कयुं छे, जे नवा अभ्यासीओ माटे घj उपकारक छे.
कर्तानी 'अन्योक्ति मुक्तावली' नामे अन्य सरस काव्यरचना छे, जे मने मारा गुरजी तरफथी जाणवा मळेल छे. पुष्पिकामां जणाव्या प्रमाणे ग्रंथकार तपागच्छीय आचार्य श्री विजयानन्दसूरि (आणसूर शाखाना आधाचार्य) जीना शिष्य हता. ऐतिहासिक साधनोना आधारे आ उपरथी तेमनो सत्तासमय सत्तरमो सैको होवानुं मानी शकाय.
विद्यार्थी एवा मारा माटे संपादननो आ प्रथम ज प्रयत्न छे, ए पण पूज्यपाद गुरुभगवंत श्री विजयसूर्योदयसूरि महाराजनी आज्ञा थवाथी करेल छे. तेथी आमा जे काइ क्षति-स्खलनादि होय ते विद्वानो क्षन्तव्य गणशे तेवी आशा छे.
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