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अनुसन्धान ४९
पांच हरियाळी
- उपाध्याय भुवनचन्द्र
'हरियाळी' ए मध्यकालीन गुजराती भाषानो एक जाणीतो काव्यप्रकार छे. प्रहेलिका अने हरियाळीनो विषय सरखो छे परंतु प्रहेलिकानुं स्वरूप एक दूहा के चोपाई जेटलुं सीमित होय छे ज्यारे हरियाळीमा समस्यानुं वर्णन विस्तृत होय छे अने गीतना रूपमां होय छे.
आवी पांच हरियाळी संकलित करीने अहीं आपी छे. प्रथम हरियाळी बीकानेर-पार्श्वचन्द्रगच्छ ज्ञानभण्डारना एक चोपडानी झेरोक्स नकलना आधारे आपी छे. बाकीनी अमारा संग्रहना प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळी छे. कोई पण हरियाळीनो उकेल ते ते पत्रमा आपेलो नथी, पण यथामति विचारीने अत्रे दरेक हरियाळीना अन्ते मूक्यो छे. वाचकोने बीजो कोई उकेल सूझे तो 'अनुसन्धान' पर लखी मोकलवा विनंति छे.
(१) ते विण सरग-नरग नहीं ते विण,
नहीं पवन ने पाणी रे; सर-नीझरण-नदी नहीं ते विण, ते विण नहीं निरवाणी रे.... १ पंडित विचारिज्यो रे एहनउ अरथ कहउ कविराज; सोलि वरसनी अवधि कहउ, अथवा कहिज्यउ आज.... पंडित० २ ते विण मुगति-सुगति नहीं, ते विण नहीं समकित-मिथ्यात रे; लोकालोक कछु नहीं ते विण, [एहवी] अद्भुत वात रे... पंडित० ३
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