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[29] खोटी प्रशंसानो तो विधि न होइ ।। ३४ ॥
"सम्यग्दृष्टी ज क्रियावादी होइ" एहवू कहइ छड् ते न घटइ, जे माटिं एक पुद्गलपरावर्त्त शेष संसार क्रियारुचि क्रियावादी कहिओ छई दशाचूर्णिण प्रमुख ग्रंथिं ॥ ३५ ॥ .. "मिथ्यात्वीनि दयादिक गुणि करि पणि सकामनिर्जरा न होइ" एहवृं लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे मार्टि मेघकुमार जीव हस्तिप्रमुखनि दयादिक गुणि संसार पातलो थयो ते सूत्रिं ज कहिउं छइ ते सकामनिर्जरा विना किम घटइ ? तथा मोक्षनि अथिं निर्जरा ते सकामनिर्जरा कही छइ ॥३६||
"कविला इत्थंपि अहयंपि" ए वचन मरीचीनी अपेक्षाई उत्सूत्र नहि, अनि कपिलनी अपेक्षाई उत्सूत्र, ते माटि उत्सूत्रमिश्र कहिइ "एह, लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे मार्टि इम करतां सिद्धान्तवचन पणि सम्यग्दृष्टी मिथ्यादृष्टीनी अपेक्षाई उत्सूत्रमिश्र थई जाइ तथा श्रुत भावभाषा मिश्र होइ ज नहीं एहवू दशवैकालिकनियुक्तिमा कहिउं छइ ।। ३७)
"मरीचिनूं वचन दुर्भाषित कहिइ पणि उत्सूत्र न कहिइ" एहवू कहइ छइ ते न मिलइ, जे मार्टि पंचाशकवृत्तिं दुर्भाषितपदनो अर्थ उत्सूत्र कहिओ छइ
॥३८॥
"उत्सूत्रलेश मरीचिनूं वचन कहिउं छइ ते मार्टि उत्सूत्रमिश्र कहिइ" एहवू कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि 'द्रव्यस्तवमां - भावलेश' पंचाशकादिक ग्रंथि कहिओ छड् ते पणि भावमिश्र होइ जाइ ॥ ३९ ॥
___ "इयमयुक्ततरादुरन्तानन्तसंसारकारणम्" एहवू श्राद्धप्रतिक्रमणचूर्णि कहिउं छइ, तेहनो अर्थ एह-'' ए विपरीत प्ररूपणा घणूं अयुक्त दुरन्तानन्तसंसारनूं कारण, इहां एहq लिख्यूं छइ जे दुरन्तानन्त शब्दनो अर्थ न मिलइ 'दुरन्त'-ते जेहनो दुःखि अंत आवइ, 'अनंत' ते जेहनो अंत नावइ ए पूर्वाचार्यना ग्रंथ खंडियानी खोटी कल्पना, जे मार्टि 'दुरन्तानन्त' कहतां महानंत कहिइ "कालमणंतदुरंत" ए उत्तराध्ययनवचननी साखिं, इहां कोई दोष नथी ॥४०॥
___ "जिनवचननो दूषनार जमालिनी परिं नाश पामइं अरघट्ट घटीयंत्र न्याई संसारचक्रवाल भमइ एहवू सूयगडांगनियुक्तिवृत्ति कहिउं छइ, ते मार्टि जमालिनिं
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