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[28] सव्वप्पवायमूलं, दुवालसंगं जओ जिणक्खायं ।
रयणागरतुल्लं खलु, तो सव्वं सुंदरं तम्हि ।। (उ. ६९४)
ए उपदेशपद गाथामां अन्यदर्शनमा पणि जीवदयादिक सुंदर वचन छ। ते दृष्टिवादनां, ते मार्टि तेहनी आशातनाई दृष्टिवादनी आशातना थाइ, एहवा अर्थ छइ ते ऊथाप्यो छइ ॥ २७ ॥
तेहनी वृत्तिमां - 'उदधाविवे' त्यादि काव्यनी साखि लिखी छइं ते अयुक्ती, एहवू कहिउं छइ ॥ २८ ॥
ते काव्यनो अर्थ फेरख्यो छइ ।। २९ ।। ___ "मिथ्यात्वीनी क्रिया - आंबाना फलना अर्थीनिं वटवृक्षसरिखी; चारित्ररहित ज्ञान पोसमासि आंबासरिखं" एहवू लिख्यू छइ तिहां ए ओछू जे अपुनबंधकादि क्रिया आंबाना बीजांकुरादिक सरिखी गणी नथी । श्रीहरिभद्रसूरिना घणा ग्रंथमां ए अर्थ प्रगट छइ ।। ३० ।।।
"लौकिक मिथ्यात्वथी लोकोत्तर मिथ्यात्व भारी" एह लिख्यूं छइ एह पणि एकांत नथी; जे माटिं बंधनी अपेक्षाई लौकिक पणि भारे दीसइ छइ । योगबिंदुमां भिन्नग्रंथिर्नु मिथ्यात्व हलुङ कहिउं छइ अभिन्नग्रंथ- भारे कहिउं छइ ॥३१॥
"अनुमोदना तथा प्रशंसा ए २ भिन्न कहिइ" एहवू लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे माटिं पंचाशकवृत्ति प्रमुख ग्रंथि प्रमोदप्रशंसादिलक्षण अनुमोदना कही छइ ॥ ३२ ॥
. "मिथ्यादृष्टीना दयादिक गुण पणि न अनुमोदवा " एहवू कहइ ते न घटइ, जे मार्टि परसंबंधिया पणि दानरुचिपणा प्रमुख सामान्य धर्मना गुण अनुमोदवा योग्य कहिया छइ, आराधनापताकादिक ग्रंथिं तथा साधारणगुण प्रशंसा ए धर्मबिंदु सूत्रमा पणि लोक लोकोत्तर साधारण गुणनी प्रशंसा करवी कही छइ ॥ ३३ ॥
"मिथ्यात्वीना दयादिक गुण प्रशंसिइ पणि अनुमोदिइ नहि" एहवू कहइ छइ ते मायानुं वचन, जे मार्टि खरी प्रशंसाई अनुमोदना ज आवइ, अनि
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