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m ते मार्टि जिम सम्यग्दृष्टी चारित्रथी वेगलो पणि पामिइ तिम मार्गानुसारी सम्यक्त्वथी वेगलो पणि होइ ते वातनी ना नहीं ॥ २० ॥
"मिथ्यात्वीनी क्रिया व्याधादिकना मनुष्यपणानि सरिखी" एहवू लिख्यूं छइ ते महाद्वेष, वचन, जे मार्टि अपुनर्बंधकना दयादिक गुण उपदेशपदादिक ग्रंथमां वीतरागनी सामान्यदेशनाना विषय कहिया छइ ॥ २१ ॥
"जैननी क्रियाइं अपुनर्बधक होइ पणि अन्यदर्शननी क्रियाई न होइ ज". एहवू जे कहइ छड् ते न मानवू, जे मार्टि समयग्दृष्टी स्वशास्त्रनी ज क्रियाई होइ अनि अपुनर्बंध अनेक बौद्धादिक शास्त्रनी क्रियाइं अनेक प्रकारनो होइ एहवू योगबिंदु प्रमुख ग्रंथि कहिउं छइ ।। २२ ॥
"असद्ग्रहपरित्यागेनैव तत्त्वप्रतिपत्तिर्मार्गानुसारिता' एहवं वंदारुवृत्ति कहउं छइ ते मार्टि जैनशास्त्रना तत्त्व जाण्या विना मार्गानुसारी न होइ ज" एहवो एकांत पणि न घटइ, जे मार्टि ए तंत ग्रहतां मेघकुमार हस्तिजीवनि पणि मार्गानुसारिपणु नावइ योग्यता लेहइ तो कोइ दोष नथी ॥ २३ ॥
"भगवती मां ज्ञानरहित क्रियावंत देशाराधक कहिओ छइ ते भांगानो स्वामी खारीनि टीकामां बालतपस्वी वखाण्यो छइ, ते मार्गानुसारी ज मिथ्यात्वी होइ ए अर्थ उवेखीनि ए भांगानो स्वामी द्रव्यक्रियावंत अभव्य जे कहइ छइ आपछंदइ ते न घटइ," जे मार्टि अभव्यादिकनि देशथीइ आराधकपणूं नथी व्यवहारिं आराधकपणूं तेहनि छइ" ते पणि न घटइ जे मार्टि ए मुग्धव्यवहार लेखामां नहीं लिंगव्यवहारनी परि क्रियाव्यवहार पणि अपुनर्बधकादि परिणाम विना पंचाशकादिक ग्रंथई निरर्थक कहिओ छइ ॥ २४ ॥
"निह्नवइ क्रियाज्ञा नथी भागी अनि सम्यक्त्वाज्ञा भागी छइ ते मार्टि ते देशाराधक तथा देशविराधक कहिइ" एहवू लिख्यूं छइ ते सर्वविरुद्ध, जे मार्टि ते सर्वथा आज्ञाबाह्य ज कहिया छइ ॥ २५ ॥
"जेहनि ज्ञान छतइ पाम्या चारित्रनो अंग होइ अथवा चारित्रनी अप्राप्ति होइ ते देशविराधक एहवू भगवती वृत्तिं लिख्यूं छइ तेहमां चारित्रनी अप्राप्ति देश विराधक न घटद" एहवू लिख्यूं छइ ते प्रकट पूर्वाचार्यनी आशातनानूं वचन, जे मार्टि परिभाषा लेतां कोई दोष नथी ॥ २६ ॥
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