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"अभव्य व्यवहारियाथी तथा अव्यवहारियाथी बाह्य छइ, एहवू पणि व्याख्यानविधिशतकमां लिख्यूं छइ", ते पणि कल्पनामात्र ज जे माटइ अव्यवहार निगोदमां अभव्यनी विवक्षा नथी, आपातमात्रइ संभव हो तो हो, पणि बेहुथी बाह्य कल्पना नथी ॥ १४ ॥
"अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व आभिग्रहिक सरि आकरूं' एहवू तत्र ज लिख्यूं छइ ते पणि न घटइ, जे मार्टि योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथि अनाभिग्रहिक आदि धर्मभूमिका गुणरूप दीसइ छइ ॥ १५ ॥
"मिथ्यात्वीनिं देवाराधन अध्यवसाय जीवहिंसादिक अध्यवसायथी पणि घणुं दुष्ट" एहवू सर्वज्ञशतक मां लिख्यूं छइ ए एकांत ग्रहवो ते खोटो, जे माटि आदि धार्मिकनि साधारणदेवभक्ति योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथमां संसार-तरणनूं हेतु कही छइ ॥ १६ ॥
"मिथ्यात्वीना गुण ते सर्वथा ज गुणमां न गणिइ" एहवू कहइ छइ ते पणि न घटइ, जे मार्टि मिथ्यादृष्टिना गुण आवि ज, सू● पहिलूं गुणठाणु होइ, एहवू योगदृष्टिसमुच्चय ग्रंथमां कहिउं छइ ॥ १७ ॥ ।
"पर समयमां नही नि स्वसमयमां कही, एहवी ज क्रिया सुपात्रदान जिनपूजा, सामाइक प्रमुख मार्गानुसारिपणानुं कारण", एहवू कहिउं छइ, ते पणी एकांत न घटइ, [जे माटई उभयसंमत दयादानादिक क्रियाइं पणि मार्गानुसारिपणुं योगबिन्दु प्रमुख ग्रंथई कहिउं छई] ॥ १८ ॥
"उत्कर्षथी अपार्धपुदगलपरावर्त्त संसार शेष हो तेहमां मार्गानुसारी" एहवू लिख्यूं छइ ते पणि विचारवू, जे मार्टि उपदेशपदमां वचनौषधप्रयोगकाल चरमपुद्गलपरावर्त ज कहिओ छइ तथा योगबिंदु वीसविसी प्रमुख ग्रंथानुसारि पणि एक चरमपुदगलपरावर्त मार्गानुसारीनो काल जाणइ छइ ॥ १९ ॥
___“सम्यक्त्वथी घणूं ढूकडो मार्गानुसारी होइ, ते संगम-नयसारादिक सरिखो ज पणि बीजो न कहिइ", एह, कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि अपुनर्बंधक १, सम्यग्दृष्टी २, चारित्री ३ ए ३ शास्त्रि धर्माधिकारी कहिआ छइ, ते तो आप आपणइ लक्षणि जाणिइ पणि एक एकथी दूकडापणानो तंत नथी
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