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________________ [30] अनंतो ज संसार" एहवी कल्पना करइ छइ ते न घटइ, जे माटिं दृष्टांतमात्रिं साध्यसिद्धि नो हि, नर्हि तो उत्सूत्र प्ररूपणा अनंतसंसारहेतु कही छइ, तिहां श्राद्ध-प्रतिक्रमणचूर्णि श्राद्धविध्यादिक ग्रंथमां मरीचि दृष्टांत कहिओ छइ तेह भणी मरिचि पणि अनन्तसंसारी हुइ जाइ । तथा सूत्रविराधनाई अनंता जीव चतुरंत संसार भम्या जमालिनि परि एहवू नंदीवृत्तिमा कहिउं छइ ते भणि जमालिनि च्यारइ गति हुइ जोईइ ॥ ४१ ॥ "जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ कहिं गच्छिहि कहिं उववज्जिहि । गो० । चत्तारि पंच तिरिक्खजोणिय मणुअ देवभवग्महणाई संसारं अणुपरिअट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति" (श०९.३.३३) ए भगवती सूत्रमा 'चत्तारि पंच' कहतां ९ भेद तिर्यंचना लेईइ इम - अनंता भव जमालिनि थाइ एहवू लिख्यूं छइ ते न मिलई । जे मार्टि एहवो विषम अर्थ पूर्वि कइणि विवरिओ नथी तथा ९ भेद तिर्यंचमां पणि नियम अनंता भव आवइ नहीं ॥४२॥ कोइक तिर्यंचनी कायस्थिति लेई जमालिनि अनंता भव कहइ छइ ते पणि कल्पना मात्र, जे मार्टि सूत्रिं भवग्रहण ज कहियां छइ ॥ ४३ ॥ "च्युत्वा ततः पञ्चकृत्वो, भान्त्वा तिर्यग्नृनाकिषु । अवाप्तबोधिनिर्वाणं, जमालिः समवाप्स्यति ॥ १ ॥" ए हैमवीरचरित्रश्लोकमां एहवू कहिउं छइ जे जमाली तिहांथी चवी ५ वार तिर्यंचमनुष्यदेवतामा भमी मोक्ष जास्यइ । एहथी अनंता भव नथी जणाता, तिहां कोइ कहइ छइ जे ५ वार तिर्यंचमां भमतां अनंता भव थाइ ते न मिलइ, जे मार्टि भवग्रहणि भमतां अनंत भव न घटइ ॥ ४४ ॥ "देव-किब्बिसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चई चइता कहिं गच्छित कहिं उववज्जिति ? गो० जाव चत्तारि पंच णेश्यतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवभवग्गहणाई संसारं अणुपरिअट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति जाव अंतं करंति ।। (श० ९. उ, ३३) ए सामान्य सूत्रि सामान्यथी देव किल्बिषियानि 'चत्तारि पंच' शब्द थी Jain Education International For Private &Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.229405
Book TitleMahopadhyaya Yashovijayjigani krut 101 Bol Sangraha Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size510 KB
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