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अथवा 'जाव' शब्दथी जिम अनंतो संसार लीजइ तिम जमालिनि सूत्रिं पणि 'जाव' शब्द 'ताव' शब्द बाहिरंथी लेइ अनंतो संसार कहवो एहवू लिख्यूं छइ, ते घणूं ज ताण्युं प्रतिभासइ छइ । तथा ए सामान्य सूत्रज एहवू पणि संभवतूं नथी, जे मार्टि- "अत्थेगइया अणादीयं अणवदागं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरिअटुंति" (श० ९. उ. ३३) ए सूत्र अनंत संसारनुं आगलि कहिउं छइ ते मार्टि पहिलुं सूत्र जमालि सरिखा देव किल्बिषियानूं ज संभवइ ।।४५।।
"अत्थेगइया' ए सूत्र अभव्य विशेषनी अपेक्षाइं, जे मार्टि एहमां छेहडइ निर्वाण नथी कहिउं" एहवू लिख्यूं छइ ते पणि न घटइ , जे मार्टि असंवुडनि सूत्रइं पणि छेहडई निर्वाण कहिउं नथी तथा भव्यविषय पणि एहवां सूत्र घणां छइ ।। ४६ ॥
"तिर्यग्मनुष्यदेवेषु, भ्रान्त्वा स कतिचिद् भवान् ।
भूत्वा महाविदेहेषु, दूरान्निवृतिमेष्यति ॥" ए उपदेशमालानी कर्णिका श्लोकमां तिर्यंचमनुष्यदेवतामां केतलाएक भव करी जमालि मोक्ष जास्यइ एहवू कहिउं. छइ तेणि करी अनंता भव नावइ, तिहां कोइ कहइ छइ जे ए भव लोकनिंदित केतलाएक लीधां बीजां सूक्ष्म एकेन्द्रियादिकमां अनंता जाणवा",एह पणि घणुंज ताण्डे जणाइ छइ । जे माटि नाम लेई व्यक्ति भव कहिया ते थूल किम कहिइ, अनि थाकता अनंता भव पणि स्या थकी जाण्या ? || ४७ ॥
"कर्णिकामां दूरि मोक्षिं जास्यइ एहवू कहिउं ते मार्टि केतलाएक भवं कहिया तो पणि थाकता अनंता लेवा" एहवू लिख्यूं छइ ते पणि पोतानी ज इच्छाई, जे मार्टि
" तिर्यक्षु कानपि भवानतिवाह्य कांश्चिद् .देवेषु चोपचितसञ्चितकर्मवश्यः । लब्ध्वा ततः सुकृतजन्म गृहे विदेहे,
जन्मायमेष्यति सुखैकखनिर्विमुक्तिम् ।। ए सर्वानन्दसूरि-विरचितोपदेशमालावृत्तिमा 'दूर' पद विनापि केतलाएक ज भव कहिया छइ ॥४८ ।।
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