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________________ ३२ अनुसन्धान ४५ व्याकरण का आश्रय लिया है और रामचन्द्र और वासुदेव आदि के मत को अस्वीकार किया है। अर्थात् श्रीवल्लभोपाध्याय स्वर १६ या २१ नहीं मानते हैं अपितु १४ ही मानकर उसकी स्थापना भी करते हैं । रचना-काल प्रस्तुत लघु कृति का नाम चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थल है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है :- खरतरगच्छ में श्री जिनराजसूरि के विजयराज्य में उपाध्याय ज्ञानविमल के शिष्य श्रीवल्लभोपाध्याय ने इस वाद की रचना की है। श्रीजिनराजसूरिजी संवत् १६७४ में गच्छनायक बने थे, अत: यह रचना भी संवत १६७४ के बाद की है। ॥ ऐं नमः ॥ श्रीसिद्धी भवतान्तरां भगवतीभास्वत्प्रसादोदयाद्, वाचां चञ्चुरचातुरी स्फुरतु च प्रज्ञावदाश्चर्यदा । नव्यग्रन्थसमर्थनोद्यतमतिप्रत्यक्षवाचस्पतेविद्वत्पुंस इहाशु शस्यमनसस्तच्छ्रोतुकामस्य च ॥१॥ सन्ति स्वराः के कति च प्रतीताः, सारस्वतव्याकरणोक्तयुक्त्या । समस्तशास्त्रार्थविचारवेत्ता, कश्चिद् विपश्चिद् परिपृच्छतीति ॥२॥ पुरातनव्याकरणाद्यनेकग्रन्थानुसारेण सदादरेण । तदुत्तरं स्पष्टतया करोति, श्रीवल्लभः पाठक उत्सवाय ॥३॥ __इह केचिद् अहङ्कारशिखरिशिखां समारूढाः सारासारविचारकरणचातुरीव्यामूढाः कूर्चालसरस्वतीति बिरुदमात्मनः पाठयन्तः स्वगल्लझल्लरी-झात्कारेण अविद्यानटी नाटयन्तः सकलशाब्दिकचक्रचक्रवर्तिचूडामणिमात्मानं मन्यमानाः स्वराणां चतुर्दशसंख्यासत्तां विप्रतिपद्यमाना अतुच्छमात्सर्याद्यनणुगुणमत्कुणतल्पकल्पा: संकल्पितानल्पविकल्पाः प्रजल्पन्ति जल्पाकाः स्वराः कियन्त ? इति वदन्तो वादिनः सानन्दं सादरं प्रष्टव्या भवन्ति विशिष्टमतिभिः प्रतिवादिभिः - १. मति के २. तद्यथा पाठोऽधिकः कै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229386
Book TitleChaturdash Swar Sthapanvad Sthalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size368 KB
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