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________________ सप्टेम्बर २००८ विषय-वस्तु प्रारम्भ में ही स्वर १४ ही हैं इसकी स्थापना करने के लिए प्रतिवादी से ५ पाँच प्रश्न पूछे हैं : १. स्वर क्या है अथवा वह शब्द का पर्याय है ? २. पर्याय है तो वह नासिका से उत्पन्न पर्याय है ? ३. अथवा स्वरशास्त्र में प्रतिपादित निषादादिका अवबोधक है ? ४. क्या उदात्तादि का ज्ञापक है ? ५. अथवा विवक्षित कार्यावबोधक अकारादि संज्ञा का प्रतिपादक है ? इन पाँच विकल्पो को उद्भूत करके इनका समाधान भी दिया गया है : १. विविध जाति के देवता, मनुष्य, तिर्यञ्च और पक्षी आदि की विविध भाषाएं सुस्वर, दुस्वर आदि अनेक शब्द पर्याय होते हैं अतः यह स्वीकार नहीं किया जा सकता । २. नासिका-उद्भूत पर्याय भी स्वीकार नहीं किए जा सकते, क्योंकि यह त्रिइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवों में भी सम्भव होती है। मनुष्यों में शोभन और अशोभन होती है । चन्द्र, सूर्य, स्वरोदय शास्त्र आदि से नासिक स्वर भी अनेक प्रकार के होते हैं, अतः यह भी सम्भव नहीं है । ३. संगीत शास्त्र में निषाद आदि ७ स्वर माने गये हैं अतः यह उसके अन्तर्गत भी नहीं आता । ४. उदात्त-अनुदात्त-प्लुत की दृष्टि से भी यह सम्भव नहीं है । ५. विवक्षित कार्यावबोधक संज्ञा प्रतिपादक भी नहीं है । इसको सिद्ध करने के लिए नरपतिदिनचर्या ने १६ स्वर स्वीकार किए हैं, किन्तु अनुभूतिस्वरूपाचार्य ने सारस्वत व्याकरण में 'अइउऋलसमाना:' 'उभये स्वराः' 'हुस्वदीर्घप्लुतभेदाः सवर्णा' 'ए ऐ ओ औ सन्ध्यक्षराणि' का प्रतिपादन करते हुए १४ ही स्वर स्थापित किए हैं, वे हैं :- अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ, इन स्वरों को स्थापित करने के लिए और सारस्वत व्याकरण को महत्ता देते हुए पाणिनि व्याकरण, कालापक व्याकरण, सिद्धहेम व्याकरण, काव्यकल्पलता, अनेकार्थसंग्रह, विश्वप्रकाश, वर्णनिघण्टु, पाणिनि शिक्षा आदि के प्रमाण दिए हैं । ल की दीर्घता को सिद्ध करते हुए पाणिनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229386
Book TitleChaturdash Swar Sthapanvad Sthalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size368 KB
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