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________________ नवेम्बर ___41 41 कर्मबीजे तथा दग्धे नारोहति भवाङ्करः ॥८॥ 'भुवनसुन्दरी' की निम्न गाथा में प्रतिध्वनित होता हैदडंमि जहा बीए परोहइ अंकुरो न पुण जम्हा । तह कम्मबीयदाहे न जम्ममरणंकुरा होति ॥८६४२।। (पृ. ७८८) ३. एक और भी पद्य है जो मेरी स्मृति के अनुसार श्रीउमास्वातिकृत माना जाता है, तज्ज्ञानमेव न भवति यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः । तमसः कुतोऽस्ति शक्तिदिनकरकिरणाग्रतः स्थातुम् ? ॥ उसका भी छायानुवाद यहाँ मौजूद है : तं नाणं पि न भण्णइ रागाई जेण उक्कडा होति । सो कह भन्नइ सूरो विहडावए जो न तिमिरोहं ? ||५९८०।। (पृ. ५४५) ४. श्रीहरिभद्रसूरि-रचित 'पञ्चसूत्र' में 'दुक्कडगरिहा', 'सुकडासेवणं', 'रागदोसविसपरममंतो' इत्यादि पदावली प्राप्त होती है । इस कथा की 'जिणधम्मतत्तनाणं दुक्कडगरहा य सुकडसेवा य ।' 'कम्मविसपरममंतो भवविडविच्छेयणकुढारो ।' (गा. २९२३-२४, पृ. २६७) इन पंक्तिओं में उस पदावली के अंश पाये जाते हैं । ५. इस पञ्चसूत्र के चतुर्थ सूत्र में 'व्याधितसुक्रियाज्ञात' नामक दृष्टान्त सोपनय लिखा गया है, जो 'विंशतिर्विशिका' में भी मिलता है । इस कथा की ८६२४ से ८६२७ इन गाथाओंमें (पृ. ७८६-८७) यह दृष्टान्त, लगभग, पञ्चसूत्र-वर्णित पदावली में ही मिलता है, जो बड़ा रोचक है । कितनेक रूढिप्रयोग या लोकोक्तिस्वरूप कहावतों का प्रयोग भी इस ग्रन्थ में किये गये है । जैसे १. 'घुणक्खरो नाओ' (गा. ३६०, पृ. ३४) २. 'नो भज्जइ लउडी न मरइ ससओ' (गा. १३३२, पृ. १२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229385
Book TitleBhuvansundari Katha ki Vishishta bato ka Avalokan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size310 KB
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