Book Title: Bhuvansundari Katha ki Vishishta bato ka Avalokan
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ नवेम्बर 35 ॥ श्रीमहावीरस्वामिने नमः ॥ 'भुवनसुन्दरीकथा' की विशिष्ट बातों का संक्षिप्त अवलोकन विजयशीलचन्द्रसूरि नागेन्द्रकुल के प्रसिद्ध आचार्य आर्यसमुद्र के शिष्य विजयसिंहाचार्यने संवत् १७५ में 'भ्यणसंदरीकथा' की रचना की । उसकी एकमात्र ताडपत्र--प्रति खम्भात के शान्तिनाथ ताडपत्र भण्डारमें मौजूद है । उस प्रतिके आधार से इस ग्रन्थ का सम्पादन किया गया है, जो दो विभागों में प्राकृत टेष्ट सोसायटी (PTS)से प्रकाशित है । उस ग्रन्थ में आनेवाली कतिपय विशेष बातों के बारेमें उक्त प्रकाशन में ही एक शोधलेख दिया गया है, वह ही यहां मुद्रित किया जा रहा है। मुझे सूचना दी गई कि उक्त कथाग्रन्थ सभी के पास पहंच नहि पाएगा, अत: यह लेख अगर 'अनुसन्धान में पुनः मुद्रित करवाओ तो ठीक होगा । अतः यह यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है ।] भुवनसुन्दरी की कथा का यह ग्रन्थ मुख्यतया अद्भुत रस का प्रतिपादन करनेवाला ग्रन्थ है । यहां वीररस, शान्तरस, करुणरस नहीं है ऐसा नहीं, किन्तु समग्र कथा का केन्द्रीय रस तो अद्भुत रस ही प्रतीत होता है। वैसे यह ग्रन्थ घटना-प्रचुर है; आप देखेंगे कि कथा शुरू होते ही विविध घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है । एक घटना पूरी हुई भी नहीं कि उसमें से दूसरी घटना फूट निकलेगी ! फिर ये सभी घटनाएं अत्यन्त विस्मयजनक एवं चमत्कार-भरपूर भी हैं । जैसे जैसे इन चमत्कारिक घटनाओं को हम पढ़ेंगे, वैसे वेसे हमारे चित्त में अद्भुत रस का एक पूर उमड़ने लग जाएगा। फिर भी इस कथाग्रन्थ में कई बातें ऐसी भी है जिनका सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक व ऐतिहासिक मूल्यांकन होना चाहिए । इसका सांस्कृतिक एवं तुलनात्मक या समीक्षात्मक अध्ययन तो होना ही चाहिए, किन्तु अभी तो मैं, यहाँ, इस ग्रन्थ में बिखरे हुए कुछ तथ्यों या मुद्दों के प्रति अंगुलिनिर्देश ही करूंगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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