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ऑगस्ट २०११
अष्टोत्तरशतसंवर शब्दार्थगभितं खोपज्ञाऽवचूर्णि चर्चितम् श्री अभिनन्दनजिनस्तोत्रम्
-पं. अमृत पटेल
शब्दालङ्कारमण्डित चित्रकाव्योनी पाण्डित्यपूर्ण परम्पराने गीर्वाणगिरानुं ओक आगq घरेणुं कही शकाय. तेमां जोके भावनी भव्यता ओछी अने भाषानी भभक चमक-दमक वधारे. छतां भाषानी चमत्कृति पण कर्ताना पाण्डित्यने वधु उजागर करे.
हृद्य अने आस्वाद्य भावभङ्गिमाथी परिपूर्ण काव्यो, महाकाव्यो, स्तुति स्तोत्रो वगेरेमां जैन मनीषिओ- जेम योगदान छे. तेम शब्दालङ्कार अलङ्कत काव्यो-खास करीने स्तुति-स्तोत्रोमां पण योगदान' छे. तेमां सोमविमलेसूरिनुं प्रस्तुत अभिनन्दन जिनस्तोत्र पण ध्यान खेंचे छे. आ स्तोत्र तेमज षोडशोत्तर 'कमल' शब्द गर्भित चतुर्विंशति जिनस्तुति (पद्य २९) ने कारणे 'शतार्थी' बिरुद प्राप्त सोमविमलसूरिजीओ कुष्टनिवारण कर्यु हतुं, ओवा उल्लेखने प्रस्तुत स्तोत्रना २७मां पद्यनो आधार सांपडे छे. । विविध छन्दोबद्ध २८ पद्यनां प्रस्तुत अभिनन्दनजिनस्तोत्रमा संवरशब्दनो
१०८ वार प्रयोग थयो छे. तेमां चित्रकाव्य माटे सर्जकोने प्राप्त थयेल स्वतन्त्रतानो उपयोग करीने आचार्यश्रीओ - र/ल, ब/व, ड/ल, श/स ने एक मानीने तथा अनुस्वार होवा छता शब्दने निरनुस्वार मानीने, संवर शब्दमांथी संवर-शंवल, शंबर-शंबल-सबल-संवल शबर-शबल-सवरसबल, वर-बल वगेरे शब्दो सिद्ध कर्या छे. अनेकार्थ कोषो अने बे अर्थो
वच्चेना सम्बन्धोना सन्दर्भथी नवा अर्थोनो आविष्कार कर्यो छे. - श्री लालभाई दलपतभाई भारतीयविद्यामन्दिर - अमदावादना हस्तप्रत विभागमां भेटसूचि ६१६१ नम्बरनी त्रिपाठयुक्त प्रतनां ६/१-७/६ नम्बरनां पत्रोमां कर्ताओ पोते ज सचंबिलनगरमा वि.सं. १६५६नां मृगशीर्ष मासमां प्रस्तुत कृति लखी छे.
प्रस्तुत कृतिनी स्वोपज्ञ अवचूर्णिमां कर्ताओ स्वयं ज संवर शब्दना