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जून - २०१२
चतारि-अट्ठ-दस षडर्थाः चत्तारि जिणवीसं ठाणेसु सिद्धसंगमणुपत्ता । अट्ठ दो समिलिया वीसे वंदामि सम्मेए ॥१॥ रिसहाणणाह सासय चत्तारि सासउ वंदे । अट्ठ दस दोइ वीसं गए(य) दंतट्ठिएसु वंदामि ॥२॥ चउ गुरु अट्ठ अडयाला दस दो बारस तहा सिट्ठी । एवं चउमुह जिण चेइए सु वंदामि जिण नयरं ॥३॥ अट्ठ दस दोइ वीसे, ठाणे आराहिऊण मे सिद्धा । नामाइ जिण चउरो तेसि वंदामि भत्तीए ॥४॥ चत्तारि सासयउ पडिमा वंदामि तिव्व । अट्ठ दस दोइ वीसं वट्ट वेयड्ढेसु चेइसु ॥५॥ अट्ठ दस दोइ वीसे ते चउगुणिया सवे असी संखा । एवं जिण भवणाइं वंदेहं पंच मेरूसु ॥६॥ सुसहर कय नव अत्था, तदुवरि सिरिकित्तिरयणसूरीहिं । रइआ इमेत्थ अत्था, खरतरगणजलधिरयणेण ॥७॥
इतिषडर्थं श्रीकीर्तिरत्नसूरि विरचिता
शान्तिनाथ स्तुति (अन्यार्थ स्तुतिः) वरसोला भला गूंदबड़ा खजूर साकर । शान्ति दद्यात् सदाचारा नीलपादहिखारिका ॥१॥ अंदरसा गुणाधार, लापसीभां नमीश्वर । अघेवर जलेबी जा रागा स्फुरेति कीर्तीय ॥२॥ सुकाचरी सुकारेला, वडी पापड़ काकडी । कौ सांगरी इसी वांणी जैनी भूया सदा फलम् ॥३॥