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अनुसन्धान-५९
जो केसव पञ्चहि पंडवेहि, पञ्चङ्गइ पणमिय जादवेहिं । सिय पञ्चम नाण आराहगाण, सो हरउ दुरियं जिणसेवगाण ॥७॥
॥ वस्तु ॥ पढम नाणहि पढम नाणहि भेय अडवीस । चउदभेय सुयस्स तह, अवहि नाण छन्भेय निम्मल । मणपज्जव नाण पुण, दुन्नि भेय इग भेय केवल । एवं पञ्चपयारमिह जेण परूविय नाण । सो नंदउ सिरि नेमि जिण मङ्गलमय अभिहाण ॥८॥
॥ भास ॥ पञ्चासव-तक्कर-हरण, दिणयर जिम दीपंति । पइ दिट्ठउ सिरिनेमिजिण, हियय कमल विहसंत ॥९॥ तुटुइ पञ्चपयार मह, अन्तराय अन्धियार । पञ्चाणुत्तर भाव सवि, पयडिय हुइ जगसार ॥१०॥ भवपुरि वसतां सामि हूय, राग दोस मिलिएहिं । रयण(णि)दिवस-संतावियउ ए, पञ्चिदिय चोरेहिं ॥११॥ सिद्धिनयरि दिउ वास हिव, करि पसाउ जिणराउ । पञ्चम गइ कामिणि रमण, वर पञ्चाणण ताय ।।१२।।
(कलश) सिवादेविनंदण पावखंडण तरण तारण पच्चलो । हय-कम्म-रिउ-बल सबल केवल, नाणलोयण निम्मलो । सिरि नाणपंचमि दिवसि थुणिइ, नेमिनाह जिणेसरो । घउ सिद्धिसंपइ देव जंपइ, कीर्त्तिराय मणोहरो ॥१३॥
॥ इति श्री नेमिनाथस्तवनम् ॥