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थोडी लघु कृतियाँ
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श्रीसिद्धिविजय रचित नेमिनाथ-भासद्वय
आबाल ब्रह्मचारी २२खें भगवान् नेमिनाथ के सम्बन्ध में बहुत साहित्य प्राप्त है । प्राकृत, संस्कृत, भाषा साहित्य में इनसे सम्बन्धित अनेकों कृतियाँ बहुतायत से मिलती हैं। श्री वादीदेवसूरि के शिष्य श्री रत्नप्रभसूरि रचित नेमिनाथ चरियं, उदयसिंहसूरि रचित नेमिनाथ चरियं, श्री सूराचार्य रचित द्विसन्धान काव्यं, श्री कीर्तिराजोपाध्याय रचित नेमिनाथ महाकाव्यं, विक्रम रचित नेमिदूतम्, पादपूर्ति साहित्य प्रभृति और भाषा साहित्य में रास, गीत, भजन, बारहमासा आदि विपुल कृतियाँ प्राप्त हैं ।
म. विनयसागर
भास-द्वय के रचयिता सिद्धिविजय हैं। पट्टावली समुच्चय पृ. १०९ के अनुसार हीरविजयसूरि के शिष्य कनकविजय- शीलविजय के शिष्य सिद्धिविजय हैं। इनके सम्बन्ध में अन्य कोई परिचय प्राप्त नहीं होता है } भास-द्वय का एक स्फुट पत्र प्राप्त है । जो १७वीं शताब्दों का ही लिखित है । जिसका माप २४.३ x १०.४ से. मी. है, दोनों भासों की कुल पंक्ति १३ तथा प्रति अक्षर ४२ हैं । अक्षर बड़े और सुन्दर है । भाषा गुर्जर है । इन दोनों भाषों का सारांश इस प्रकार है :
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विवाह हेतु गए हुए नेमिनाथ ने जब पशुओं की पुकार सुनी तो रथ को वापिस मोड़ लिया । उस छबीले नेमिनाथ के नयन कठोर हो गए । दूसरे पद्य में आषाढ़ मास के आने पर काले बादल छा गए हैं और घनघोर वर्षा हो रही है । तीसरे पद्य में सावन का महिना और उस वर्षा की छाया चल रही है । भादवे के महिने में वही छाया स्नेह को जागृत करती है और आसोज के महिनें में नेत्रों में आंसू ढलकाती है। चौथे पद्य में नेमिनाथ की काया सुन्दर है । वह इतनी माया क्यों कर रहे हैं और मेरे हृदय में विरहानल की आग को क्यों प्रदीप्त कर रहे हैं । पाँचवें पद्य में उनकी कर्त्तव्यशीलता
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