________________ जून 2008 105 विक्कमवच्छराओ य वसुअट्ठकालेण महुमासेणं / सियपक्खे तेरसी[ए] रइया उत्तमेण सुद्धेण // 186 / / विक्रमादित्यना संवच्छर थकी 9-8. संवत 1689 वर्षे चैत्रमासइ शुक्लपक्षनी तेरसनइ दिनइ उद्धरी ऋषि उत्तमइ, निर्दोष आचारनइ धणी, निर्दोष प्रणामइ करी. // 186 // ___ इति श्रीशतपंचाशितिकासंग्रहणी आवश्यकादि-अनेकशास्त्रत उद्धारीकृताः। इति श्रीशतपंचाशितिका संग्रहणी समाप्ता / ऋष्युत्तमेनाऽऽत्मार्थे कृता / ग्रंथाग्रं 651 श्लोकार्थः। लिखितम्-लद्धाजी. फतेपुरमध्ये. फागणसुदी 7. C/o. जैन उपाश्रय पांजरापोल, रिलीफ रोड, अमदावाद-- 380001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org