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________________ अनुसन्धान 44 कंपिलपुरइ. राजगृहनगरइ. वली कंपिलपुरइ. // 109 / / ४४-देहवर्ण सव्वे वि एगवण्णा निम्मलकणगप्पहा मुणेयव्वा / छखं(क्खं)डभरहसामी तेसिं पमाणं अओ वुच्छं // 110 / / 44. देहना वर्ण कहइ छइ. सर्व चक्रीना एक वर्ण निर्मला सौवर्णनी कांति सरीखा जाणिवा. छखंडनो भरतसामी. तेहना देहनो प्रमाण आगलि कहस्यउं. // 110 // ४५-चक्रीशरीर पंचसय 1 अद्धपंचम 2 बायालीसा य 3 अद्धधणुयं च / इगुयालधणुसद्धं च 4 चउत्थे पंचमे चत्ता 5 // 111 / / 45. चक्रीना शरीरनो प्रमाण कहे. पांच सय धनुषनो भरत 1. साढा 400 सय धनुष ऊंचा. बइतालीस धनुष ऊंचा. ऊपरि वली आधो धनुष. साढा इंगतालीस धनुष ऊंचो चउथो चक्री. पांचमा 40 धनुष ऊंचा. // 111 / / पन्नत्तीसा 6 तीसा पुण 7 अट्ठावीसा य 8 वीस य 9 धणूणि / पन्नरस 10 बारसेव य 11 अप्पच्छिमो सत्त य धणूणि 12 // 112 / / पइंत्रीस धनुष ऊंचा. त्रीस धनुष ऊंचा. वली अट्ठावीस धनुषना ऊंचा. वीस धनुषना ऊंचा. पनरइ धनुषना ऊंचा. बार धनुष ऊंचा. छेहलो चक्री सात सय धनुषना ऊंचा. // 112 / / ४६-चक्रीगोत्र कासवगोत्ता सव्वे चउद्दसरयणाहिवा समक्खाया / देविदवंदिएहिं जिणेहिं जियरागदोसेहिं // 113 / / 46. चक्रीनी गोत्र कहइ छड्. काश्यपगोत्री सगलाई. चउद रत्नना अधिपती कह्या. देवता इंद्र शकेंद्रादिना वंदनीक तेणि तीर्थंकरइ, जेण जीता राग-द्वेष. // 113 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229364
Book TitleShatpanchashitika Sangrahini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmkirtivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size623 KB
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