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जून २००८
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श्रीउत्तमऋषिविरचितश्रीशतपञ्चाशितिका संग्रहणी
सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय
(भूमिका) साहित्यना क्षेत्रमा जैन मुनिओए अपूर्व प्रदान कर्यु छे. ते पछी प्राकृत भाषा विषयक होय, संस्कृतभाषा विषयक होय, के गुर्जरभाषा विषयक होय. प्रत्येक भाषामां जैनमुनिओए गद्य-पद्यात्मक विपुल साहित्य- सर्जन कर्यु छे. एज रीते जैनमुनि रचित 'श्रीशतपञ्चाशितिका' नामक प्राकृतभाषामय नानकडो ग्रन्थ उपलब्ध थयो छे, तेनुं यथामति सम्पादन करुं छु.
जैनो माटे २४ तीर्थङ्कर परम आराध्य तत्त्व छे. तेथी तेओने माटे अद्य पर्यन्त घणुं लखायुं छे, लखातुं रह्यं छे. पूर्वे भावनगरस्थ श्रीजैन-आत्मानन्दसभा द्वारा बृहत्तपागच्छीय श्रीसोमतिलकसरिप्रणीत, राजसरिंगच्छीय पण्डित श्रीदेवविजय विरचित वृत्तिथी अलङ्कत 'सप्ततिशतस्थानप्रकरणम्' नामनो ग्रन्थ प्रकाशित थयो छे. तेमां ऋषभादि २४ तीर्थङ्करना च्यवनादि पांच कल्याणकने आश्रयीने १७० स्थान देखाडवामां आव्या छे. ज्यारे प्रस्तुत ग्रन्थमां तेमांनां २७ स्थान वर्णववामां आव्यां छे. तदुपरांत, चक्रवर्ती, बलदेव-वासुदेव-प्रतिवासुदेव-अर्थात् ६३ शलाकापुरुषनी विशिष्ट माहिती, एवं ऐरवतक्षेत्रनां वर्तमान तथा आगामी २४ तीर्थङ्करोनां नाम, भरत क्षेत्रमा थनारा आगामी ६३ शलाकापुरुषनां नाम, २० विहरमान जिन, नारद, कुलकर विषयक अनेक स्थानोनुं निरूपण करवामां आव्युं छे. साथे ज स्वोपज्ञ टबो पण छे. तेथी आ कृतिनुं महत्त्व छे. आ ग्रन्थमां छन्द-अलङ्कार के काव्यनी विशिष्ट चमत्कृति जोवा नथी मळती. छतां जेओने शलाका पुरुषनी सामान्य जाणकारी मेळववी छे तेओने माटे आ उपयोगी ग्रन्थ छे.
प्रस्तुत ग्रन्थमां वर्णवायेलां स्थानोनो आ क्रम छे. - श्लोक स्थान ३-८२ वर्तमान २४ तीर्थङ्करोनां माता-पिता नाम, वर्ण-एवं २७ स्थानोनुं
निरूपण.
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