________________ September-2006 15 वंसु उत्तमु वंसु उत्तमु पुहविसुपसिद्ध धण-कंचण-घण-रयण-सयणवग्गु उ मग्गमुत्तउ बहु मन्नइ धुरि नरह नरवरिंदु आणंदजुत्तउ / सामिसलाहण-म(भ?)त्ति इध फलु इत्तलउ लहंति भवियण जिण ! माहप्पु तुह कह मारिस जाणंति ? // 22 / / मणुयलोयहि मणुयलोयहि रज्जु आसज्जि दहदोइकप्पाहिवइ हविय विविहबहुसुहुवभुंजिय गेविज्जणुत्तरपवरसुहसएहि अप्पाऽणुरंजिय / तव विणु केवलु लहिय पय पावइ परमाणंदु नाममंतु जंपंत तुह भवियण पासजिणिंद // 23 / / विसमआसण विसमआसण के वि सेवंति कि(के)वि दुक्करु करई तवु के वि झाणु झायंति चित्तिहि / कि(के)वि कट्ठउ उक्किट्ठतर चरइं तुज्झ दंसणनिमित्तिहि / कटरि कटरि मह पुव्वभव-संचियसुकयअपार चिंतामणिसम पासपहु अलवि पत्त सुहयार // 24 // [ अपभ्रंशभाषा // ] इति पार्श्वजिनपतिरमितगुणततिविहितसुमतिरनुक्षणं भाषाभिरष्टभिरभिनुतोऽर्बुदविशदभूधरभूषणम् / श्रीकीर्तिरलसुखानि दिशतादिह परत्र पदं परं कल्याणचन्द्रवितन्द्र वदनाकृतिरयं भवतां वरम् // 25 / / // इति श्रीअर्बुदाचलमुखमण्डन-श्रीमण्डलिकवसहीमण्डन श्रीनवफणपार्श्वनाथस्याऽष्टभाषिकं वर्धमानच्छन्दोभिः स्तोत्रमिदमिति // // पं० सोमगणिविद्वद्वरैः शोधनीय(शोधित?)मिति // छ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org