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________________ September-2006 के कविनुं भाषा तथा कवित्व पर सारुं प्रभुत्व हशे. आ कृतिनुं शोधन पं. सोम गणिए करेलुं छे तेम तेना अन्ते आपेल पुष्पिकाथी जणाय छे. स्तवमां शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकापैशाची भाषाना श्लोकोना अघरा शब्दोनी संस्कृत छाया अने क्यांक क्यांक भावार्थ पण प्रतिना हांसियामां टिप्पण रूपे मूक्या छे ते पण शोधके ज लख्या हशे तेवुं अनुमानी शकाय छे. कर्ता : स्तवना कर्ता तरीके कोई नाम प्रतिमां निर्देशायेलुं नथी छतां छेल्ले प्रशस्ति श्लोकमां आवतां कीर्तिरत्न तथा कल्याणचन्द्र ए बे नाम परथी एवं अनुमानी शकाय छे के कीर्तिरत्नना शिष्य कल्याणचन्द्रे आ स्तवनी रचना करी हशे 'जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास' मां १६४९मां कोई गूर्जर साहित्यना रचयिता तरीके कल्याणचन्द्रनो निर्देश आवे छे. आ प्रतिनो लेखनकाळ पण १६मा शतकनो उत्तरार्ध होवानुं अनुमानतः जणाय छे. तेथी आ स्तवना रचयिता ते ज कल्याणचन्द्र होय तेवुं अनुमान थाय छे. प्रति परिचय : प्रतिमां एक ज पत्र छे. तेनी बन्ने तरफ सुन्दरस्वच्छ अक्षरोमां लेखन करवामां आव्युं छे. शैली पडिमात्रानी छे तेथी १६मा शतकमां लखायेली हशे तेवुं अनुमानी शकाय छे. प्रतिना हांसियामां विषम पदोना अर्थो अपवामां आव्या छे. स्थिति सरस छे. ॥ ५ ॥ श्रीनवफणपार्श्वनाथस्याऽष्टभाषिकं स्तोत्रम् $3 प्रणमदिन्द्रशिरोमणिरुग्भरो- दकविधौतपदाब्जरजःकणम् । नवपणप्रभुपार्श्वजिनेश्वरं विनयतो विनुवामि कृतादरम् ॥१॥ तव गुणग्रहणादगुणोऽपि सद्गुणगणो मनुजो जिन ! जायते । किमुत पार्थिवगन्धगुणोऽनणुः सुघनसारदलेन जले भवेत् ॥२॥ Jain Education International , 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229348
Book TitleNavfana Parshwanath Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyankirtivijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size272 KB
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