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________________ March-2004 " अज्ञानी यत् कर्म क्षपयति बहुवर्षकोटिभिः प्राणी ! तत् ज्ञानी गुप्तात्मा, क्षपयति उच्छासमात्रेण ॥" अज्ञानी भणीइ अजाण, जं कर्म बहु घणी वर्षनी कोडिं करीनइ क्षिपइवेइ, ज्ञानवंत सविवेकपणई तं कर्म एक उच्च्छासमात्रि एक क्षणमाहि क्षपर, तेह कर्मनइ पेलइ पारि जाइ ॥ "सट्ठि वासहस्सा, तिसत्त खत्तोदएण धोरण । अणचिन्हं तामलिणा, अनाणतवोत्ति अप्पफला ॥" तामल रिषीश्वरिइं नदीतणइ उपकंठि साठि सहस वर्ष भिक्षा आणी २१ वार जल - पाणी- सूं धोई दस दिग्पालविभाग करी शेष थाकती आहार करइ हूंतई जं तप आचरिडं, पुणि ते तप अल्पफल जाणिवुं ॥ " तामलतणइ तवेण, जिणमइ सिझसि सत्त जन्न (ण) । अन्नाणहअ वसेण, तामलि ईसाणइ गयउ || " 19 जं तपु तामलिरिषीस्वारं अज्ञानपणई कीधु, तीणि तामलरिषि ईशान -- बीजु देवलोक, जिहां २ सागरोपम अधिकेरुं आयु तिहां गिउ । तु ज्ञानतणु एवडु महिमा है । पंचविध ज्ञान शास्त्राधिगमतु ऊपजइ । "अलोचनगोच | रे | ह्यर्थे, पुरुषाणां शास्त्र तृतीयं लोचनम् । अनु (न) धीतशास्त्रः पुमान्, चक्षुष्मानपि अन्ध एव ॥" जे अर्थ लोचनगोचर-चक्षुमार्गि नावइं तेहरइं शास्त्ररूपीउं त्रीजउं लोचन जाणिवरं । जे शास्त्र न जाणइ ते देखतउ अंध जाणिवड | शास्त्र तर जाणीइ जु सद्गुरुतणा उपदेश सांभलीइ । सद्गुरुतणा उपदेश सांभल्या पाखइ जीव हित-अहित, आचार- अनाचार, क्रिया-कुक्रिया, मार्ग-कुमार्ग, पुण्य-पाप, कृत्यअकृत्य न जाणइ । ज्ञानना प्रमाणतु महापापनुं करणहार दढप्रहाररिषि सिद्धि गयु । अल्पकालि अयमत्तउ ऋषीश्वर तथा गयसुकमाल ऋषि, मेतार्य ऋषि प्रभृति अनेक ऋषीश्वर बिहं घडी माहि आठ कर्म-अठावन सु प्रकृति क्षिपी मुक्ति पाम्या, ते विवेकतणुं प्रमाण । ते विवेक शास्त्र थिकी ऊपजइ । ते शास्त्र ३ प्रकारिः धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र । पुण ईहां हिवडां धर्मशास्त्रनुं अवसर । श्रीकल्पशास्त्र बोलीइ । कल्प अनंता छइ:- रैवतकाचलकल्प, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229342
Book TitleKalpa Vyakhyan Mandani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size388 KB
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