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अनुसन्धान ४९
उपाध्यायश्रीक्षमाकल्याणगणिकृत श्री जैन तीर्थावली द्वात्रिंशिका
सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ
तीर्थमाळा स्तवन
तीर्थमाळा (तीर्थावली) अने चैत्यपरिपाटी अटले तीर्थयात्रासम्बन्धी ऐतिहासिक वा अन्य माहिती आपनार महत्त्वना स्रोत. बन्ने प्रकारनी रचनाओ माटे पू. मुनि श्री कल्याणविजयजीओ 'पाटण चैत्य परिपाटी' ग्रन्थमां सरस समजण आपी छे. जोईओ (वांचीओ) अमना ज शब्दोमां
"तीर्थमाळास्तवनोनुं लक्षण ओ होय छे के पोते भेटेला-सांभळेला के शास्त्रोमां वर्णवेला नामी-अनामी तीर्थोना चैत्य वा प्रतिमाओनुं वर्णन, तेनो साचो वा कल्पित इतिहास, तेनो महिमा अने ते सम्बन्धी बीजी बाबतोनुं वर्णन करवा पूर्वक स्तुति वा प्रशंसा करवी. आचाराङ्ग नियुक्ति अने निशीथचूर्णिमां थयेला तीर्थोनी नोंध ते आजकालनी तीर्थमाळानुं मूळ समजलै जोईओ.
चैत्यपरिपाटीस्तवनोनुं लक्षण ओ होय छे के कोईपण गाम के नगरनी यात्राना समयमां क्रमवार आवतां देरासरोनां नाम, ते ते वासनां नाम, तेमा रहेली जिनप्रतिमाओनी संख्या वगेरे जणाववा पूर्वक महिमा वर्णन कर, ते....."
पू. उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणजी महाराजे पोते करेल तीर्थयात्रानी भावसभर स्मरणा रूपे आ कृतिनी रचना करी होय तेनुं 'तीर्थमाळा द्वात्रिंशिका' नाम योग्य छे. 'अनंसिषं, प्रणताः, नताः, वन्दे' वगेरे प्रयोग पण पूर्वयात्रा स्मरणना साक्षी छे.
आवी प्राकृत-अपभ्रंश-संस्कृत-मारुगुर्जर वगेरे भाषाओमां रचायेली गिरनार-समेतशिखर-शत्रुजय-नाकोडा-अमदावाद-वागड-कुरुदेश-सोरठ-खंभातबद्री (हिमालय) वगेरे स्थळो (तीर्थस्थळो)नी तीर्थमाळा उपलब्ध थाय छे. जेनी संख्या लगभग ६० थी ७० थाय. जैनतीर्थावली द्वात्रिंशिका-सार :
पद्य १-२मां मंगळ अने प्रतिमाने स्थान आपी ३ थी २२ पद्य सुधी
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