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सप्टेम्बर २००९
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कविओ पोते करेल शत्रुजय, गिरनार, घोघा, भावनगर, भृगुकच्छ (भरुच), हालार, कंठाल, गुजरात, कच्छ, खंभात, शंखेश्वर, मरुभूमि (मारवाड), गोडीपुर, अर्बुद (आबु), सीरोहि, महेवापुर (मेवापुर) लोद्रवपत्तन (लोद्रवपुर), जेसलमेर, बीकानेर, रिणीपुर (बीकानेर पासे आवेलुं हाल तारानगर तरीके ओळखातुं गाम) फलवर्द्धिका (फलवृद्धिपार्श्वनाथ-मेडतारोड ?) गोडवाड, राणपुर (राणकपुर), अयोध्या, चन्द्रपुरी, चंपानगरी (चंपापुरी), समेतशिखर, राजगृही, वैभारगिरि, विपुलाचलगिरि, रत्नाचलगिरि, स्वर्णगिरि, उदयाचलगिरि, पावापुरी, वडग्राम, काकंदि (संभवनाथ भ.नुं जन्मकल्याणक स्थळ), फतुआ (फतेहपुर ?) पाटलिपुत्र (पटना) वगेरे तीर्थोने स्मरण करीने परमात्माने नमस्कार करवामां आव्यो छे. पद्य २३मां वैताढ्यगिरि उपर आवेला जिनबिम्बोने वन्दनानी भावना व्यक्त करी छे. भावनगरनो उल्लेख होवाथी भावनगरनी स्थापना पछीनी आ रचना होवानुं नक्की थाय छे.
श्लोक २४-२५मां जैन परम्परानुसार केवा जिनचैत्यने वन्दना करवी तेनो खुलासो कर्ताओ आ प्रमाणे कर्यो छे : "शुद्ध आचार्य द्वारा स्थापितप्रतिष्ठित होय, शरीरमां-प्रतिमामां गुह्य भाग गूढ-न देखाय तेवो होय, अने आकृति खूब सुन्दर होय; वळी मिथ्यादृष्टिओ द्वारा तेना पर मालिकी न थती होय तथा सम्यक्त्ववाळा लोको द्वारा जेनी भावपूर्वक सेवा थती होय, तेवा अर्हत्-चैत्योनो अहीं रहेलो हुँ भक्तिथी वंदं छं.
पद्य २६मां जिनमार्गनुं अने पद्य २७ मां जिनपूजा- माहात्म्य ओछा पण वजनदार शब्दथी जणावी पछीना बे पद्य २८-२९मां स्थापनानिक्षेपनो विरोध करनाओनी सारा शब्दोमां टीका करी छे. पद्य ३० मां भावतीर्थ अवा अरिहंत परमात्मानी दर्शननी ईच्छा व्यक्त करी पद्य ३१मां वीतराग अवस्था न प्राप्त थाय त्यां सुधी जिनपूजन-वन्दन-सेवननी भावना स्थिर रहे ते प्रार्थना करी छे.
उपसंहारना अन्तिम पद्यमां 'अमृतधर्मगणीना शिष्य क्षमाकल्याण उपा. बनावेल जैन तीर्थावली द्वात्रिंशिका भव्य आत्माओनी दर्शनशुद्धिने माटे थाओ' अ प्रमाणे इच्छा व्यक्त करी कृतिने पूर्ण करी छे.
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