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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
जे ते पत्रोमां आ कृति सचवाई हशे अने तेनो आ ऊतारो हशे. 'तत्त्वविचार 'नी पुष्पिकामां लेखकनुं नाम छे, कर्तानुं नथी. तेथी एम लागे छे के ते आखीये प्रति जिनपालगणिनी रचनाओ धरावती हशे अने तेमां प्रान्तभागे कर्ता तरीके तेमनुं नाम हशे, जेने आधारे अहीं कर्ता तरीके तेमने गणावेल हशे वळी, १३८४ तो ले.सं. छे. तेथी आ रचना ते करतां पूर्वे ज रचाई होय तेम मानी शकाय. जाणकारो द्वारा मळती माहिती प्रमाणे वाचनाचार्य जिनपालगणि ते आ. जिनपतिसूरिना शिष्य हता. सं. १२२५मां तेमनी दीक्षा, अने सं. १३१०मां कालधर्म छे. युगप्रधानगुर्वावलीनी रचना तेमणे करी छे. आथी स्पष्ट छे के आ रचना १३८४ करतां घणी वहेली थई छे.
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जिनपालगणि खरतरगच्छनी परम्परामां थया छे. आनुं लेखन ‘वछालसास्थाने’ थयुं छे. ते स्थान 'राजभूमि - देशमध्ये' आवेलुं होय तेम जणाय छे. 'राजभूमिदेश' नो अर्थ 'राजस्थान' थई ज शके. 'वछालसा' ए त्यांनुं कोई ग्राम हशे. अस्तु.
अणोरुपा आवेढिया परिवेढिया
बादरु
विखइ
न्यासापहारु
कुपितु
पराहउं
फासूवेसणउं नवे संपदे
अपरिचित शब्दो
अपार, जेनो अन्त नहि तेवो
आवेष्टित - परिवेष्टित, घेरायेला
स्थूल
विषे
थापण ओळववी
कुप्य
तांबा वगेरे धातुना पदार्थो
-
शी.
परायुं-पारकुं(?)
प्राशुक- एषणीय, निर्दोष अने कल्प्य तेवो आहार नव संपदा वडे, संपदा - विरामस्थान; सूत्र बोलतां ज्यां अटकवानुं आवे त्यां अटकवुं ते विराम - संपदा