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एयाए भावणाए जइ अवसानंपि मज्झ किर होज्जा । ता अहयं चिय धत्रो नहु अनं पत्थणिज्जंति ॥ ४९ ॥ भावण-अमियं अहवा कम्मवसा मा समुलसउ मुज्झ । अन्नस्सवि दट्ठूणं एयं घुंटेसु किं कइया ? ॥ ५० ॥ वेरग्गभावणाए किंवा वच्चंतु मज्झ दियहाई | निययियचितियाई लब्धंति नवत्ति को मुणइ ? ॥ ५१ ॥ एयं भावणतत्तं सव्वंगं तुज्झ जीव ! जइ प्फुरइ । पंचुत्तरवासीणं वि सोक्खं मन्नामि ता तुच्छं ॥ ५२ ॥ एग होऊणं मुहुत्तमेत्तं विसिटुमंतं व । पइदियहं झाज्जह एयं उवएसवरतत्तं ॥ ५३ ॥ जह दीवाओ दीवो बोहिज्जइ भावणाए तह भावो । इय पढह गुणह झायह भविया एयं सया तत्तं ॥ ५४ ॥ सिरि रयणसिंहसूरी भावण - सिहरम्मि आरुहेऊणं । अप्पाणुसासणं भो ! जंपइ जिणसासणे सारं ॥ ५५ ॥ बारसअउणत्ताले वइसाहे सेयपंचमिदिणम्मि । अणहिलवाडनयरे विहियमिणं अप्पसरणत्थं ॥ ५६ ॥ छ ॥
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(५) हितशिक्षा कुलक
जइ जीव ! तुज्झ सम्मं परलोयपयाणयं वसइ हियए । ता धम्मंमि माओ होज्ज मणागंपि न कयावि ॥ १ ॥ मोहविज्जाहि रत्ताण गुरुम्मि जाण बहुमाणो । धित्तेसिं बहुमाणो जइ नो संवेगरंगाओ ॥ २ ॥ मण नयणह अनुजीह क्रिय तीहं विरलीकरेसु । संजमवंतु सुवासणड जउ मुणि कोइ कहेसु ॥ ३ ॥ किरियपरायण बहुय मुणि दीसहि वेसु धरंत । विरला केइ सुवासणा जे रंजहिं पुण संत ॥ ४ ॥
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अनुसन्धान ४४
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