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जून २००८
seat विहु गुरुओ मिलिआ सव्वेवि जइ पुणो हुंति । अद्दंसणेण तेसि साहू [णं] मह नमुक्कारो ॥ ३५ ॥ नाणं चिअ साहू साहूसु न ताण होइ अवयारो | किं परविकत्थणेणं अहवा चिंतेसु अप्पाणं || ३६ || अहयंपि एरिसो अह सुद्धं मग्गं च इह परूवितो । संविग्गपक्खि अत्ता, धन्नं मन्नामि अप्पाणं ॥ ३७ ॥ एवं ठियस्स सययं मणस्स भावस्स पत्तिअइ को वा । पच्चाइएण किं वा अप्पा चिअ सक्खिओ इत्थ ॥ ३८ ॥ जं पुण वायाए च्चिअ भणामि कारण किं पि न करेमि । तत्थत्थि गुरु अदुक्खं मणमंदिरंसंठिअं मज्झ ॥ ३९ ॥ सुद्धाला अणदाणं काउं मित्तिं च सव्वसत्तेसु । अप्पाणं गरिहंतो भावेसु अहं कया तत्तं ? ॥ ४० ॥ एगं चिअ मह सलयइ जं न सहाए लहामि मणइट्टे । एवं ज्झायंतस्स उ को जाणइ किंपि होहित्ति ॥ ४१ ॥ आणंद दाऊणं समग्गसंघस्स गहियआसीसो । अप्पाणं भावितो विहरेसु जया तया अहयं ॥ ४२ ॥ जइ कहवि जाइ दियहं रत्ती न हु जाइ अप्पचिंताए । थोवजले मच्छस्स व तल्लोवेल्लि कुणंतस्स ॥ ४४ ॥ चेयहु चेयहु चेयहु हंहो मूढ मइ ! कहिय कहाणि सव्वपयारिहिं तुम्ह मई । हिय ताविवि पुणु पुणु खोट्टेसुहु धरणि, परत न केणवि होस तर्हि पत्तइ मरणि ॥ ४५ ॥ हियड़इ रंगुन जाहं तहं सउ वक्तु सुपडिहाई | जइ पुणु केवइ रंगु तउ नयणिहि नीरु न माइ ॥ ४६ ॥ जलसमं कामीणं नीरसलोयाण तुसवुससमाणं । विरयाणं अमियसमं एयं सव्वंपि जं भणियं ॥ ४७ ॥ गंतव्वं कत्थ मए कह एसो चंदिणो य जियलोओ । कह माइ सयण - विहवो इय झूरसि हा हयास ! तया ॥ ४८ ॥
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