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अनुसन्धान ४४
सयलंपि भवसरूवं नाऊणं गुरुमुहाउ मुणिणोवि । वटुंति जं अकज्जे अहह महामोहविप्फुरियं ! ॥ २१ ॥ भणसि मुहेणं सव्वं तत्तं अइसुंदरं तुमं जीव ! । जं न कुणसि काएणं तं मन्ने गरुयकम्मोसि ॥ २२ ॥ चिट्ठइ राई पासइ न कोइ हवउ जह तह वणुट्ठाणं । इय मूढ ! लोयरंजय ! कुणमाणो किं पि न लहेसि ॥ २३ ॥ जइ एगो च्चिय रागो निग्गहिओ होज्ज जीव ! संसारे । अट्ठण्हवि कम्माणं ता उच्छेओ कओ झत्ति ।। २४ ॥ को दिव्वं लंघेउं अहवा सक्कइ वियाणमाणोवि । तह वि हु उज्जमसीलो होज्ज सया रायविजयम्मि ॥ २५ ॥ जो चिंतइ न परत्तं देइ कुबुद्धि वयाउ भंसेइ । तेण समं संसरिंग वज्जह दूरेण मणसावि ॥ २६ ॥ पाएण दूसमाए धम्मे संसग्गिया इह पमाणं । तेण सुमित्तेहि समं संसरिंग कुणसु जा जीवं ।। २७ ।। जइ पुच्छह निच्छयओ न गिही साहूवि पावइ भवन्नं (न्त)। भावेण केवलं पि हु लभ्रूणं जाइ निव्वाणं ।। २८ ।। गाहाण सिलोगाणं अत्थं नाऊण सव्वभंगेहिं । तत्थवि तं न हु नायं भावण-अमियं जओ झरइ ।। २९ ।। अवहियहियओ होउं खणे खणे अप्पयं विभावेसु । कत्तो अहमायाओ गंतूण कहि किमणु होहं ? ।। ३० ॥ सव्वगुणाणं जोग्गं अप्पाणं जियपमाइणं नाउं। किं न भयंतो(भवत्तो?)विरमसि सत्तीए उज्जमं काउं? ॥ ३१ ॥ धम्मे परमरहस्सं रे जिय ! संवेगचोयणासारं । चूलियजुयलं झायसु जइ अ - -- -- - - ३२ ॥ एएणवि बीएणं कयावि धम्मुज्जवो(मो?) तुहं हुज्जा। अन्नह दुहसयबुड्डो पायालं जासि सत्तमयं ॥ ३३ ।। कीयं आहाकम्मं नीआवासो गिहीसु पडिबंधो । अमिओ परिग्गहो तह हुंति जईणं इमे दोसा ॥ ३४ ।।
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