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जून २००८
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जाणंता अगहिल्ला कह भुल्लाइं दियालजियलोए । विसएहि भोलिया अह मह वयणं ही कुणंतु कहं ? 11 ५ ।।
अज्जवि किंपि न नटुं जइ चेयसि हंदि किंपि अप्पाणं । विलवणमेत्तट्ठिओ पुण अरन्नरुन्नं समायरसि ।। ६ ।। कन्नि धरेविणु दिन्न मई इय सक्खिय लोइ । हं केणवि न हु जग्गविउ मन जंपसि परलोइ ॥ ७ ॥ चिंतहि हियडं दज्झिसइ पच्छायावु करेसि । होसइ कांइवि नेव तुहु पर हत्थड़ा म लेसि ।। ८ ।। एएहिंवि वयणेहिं तह जिय ! मन्ने न भावसब्भावं । जा नेव पुलइयंगो रेल्लसि अंसूहि महिवलयं ॥ ९ ॥ जस्स मणदप्पणंमी भावत्थो फुरइ एयभणियस्स। सो देवाण वि पुज्जो कि पुण मणुयाण जियलोए ? |॥ १० ॥ गिरिसिहरग्गिहि वरसियइ रहइ न पाणिउ जेव । पत्थर-सरिसह नीरसह कहिउ सुणिज्जह तेव ॥ ११ ॥ वयणेणं भणियमिणं तरामि नो सिक्खिउं च बेडाए । सिरि धम्मसूरि सीसो जंपइ एयं रयणसूरी ।। १२ ॥
(६) संवेगचूलिका कुलकम् नारीण बाहिरंगे जह दिढे माणसं समुल्लसइ । तह अंतरसयलंगे जं दिढे होइ तं सुणह ॥ १ ॥ रणरणओ दीणत्तं महाभउव्वेय तास कलमलयं । एयं अणहविऊणं अप्पा वि हु उडणं महइ ॥ २ ॥ विरलो च्चिय धावंतो धम्मो धम्मोत्ति कोवि मज्झम्मि । अप्पाणं रंजंतो जो मुंचइ विसयगहिलत्तं ।। ३ ॥ ता नस्थि इह कहाओ ते दिटुंता न ताउ जुत्तीओ। संसारुव्वेयकरा मह कने जा न पत्ताओ ।। ४ ।।
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