________________
अनुसथान ४४
नाहटाजीनी आ प्रतिलिपिनी नोटबुक मुनिश्री मृगेन्द्रविजयजीए पोताना संग्रहमा साचवी राखी छे. 'अनुसन्धान ना प्रकाशनथी प्रमुदित ए वृद्ध मुनिश्रीए ते नोंधपोथी पोतानी पासे होवानु, अने प्रकाशित करवानी अनुकूलता होय तो मोकलवानुं प्रेम तथा औदार्यपूर्वक सूचव्यु. तेनो हकारात्मक प्रत्युत्तर अपातां तुर्तज ते नोंधपोथी तेमणे मोकली; ते नोंधपोथीने यथासम्भव शोधीने अत्रे प्रकाशित करवामां आवे छे. मध्यकालना प्रारम्भ वखतनी, कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यना समकालीन आचार्यनी रचनाओनुं सागमटे प्रकाशन करवानो अवसर, एक ल्हावारूप अने रोमांचक अवसर लागे छे. आ नोंधपोथी आपवा बदल मुनिश्री मृगेन्द्रविजयजी प्रत्ये आभारनी लागणी व्यक्त करूं छु. अने आवी बीजी पण सामग्री तेमना संग्रहमां होय तो मोकले, तेवी प्रेमभरी भलामण करुं छु.
आ रचनाओमां जिनस्तोत्रो छे, गुरु-स्तुतिओ छे, उपदेशक कृतिओ छे, अने आत्माने हितशिक्षा आपती वैराग्यवाहक रचनाओ पण छे. रचनाओना काव्य-प्रकारो जोईए तो कुलक, चूलिका, विज्ञप्तिका, षट्त्रिंशिका, गीत, छप्पय, स्तोत्र,स्तवन, एवा विविध प्रकारो आ संग्रहमां छे. छन्दोवैविध्य जूज छे. मुख्यत्वे आर्या के गाथा, अनुष्टप, शार्दूल जेवां त्रण-चार छन्दो छे. एक रचना छप्पय छन्दमां छे. अपभ्रंश रचनाओमां तदनुरूप छन्दप्रयोग छे. भाषाओ संस्कृत, प्राकृत (मरहट्ठी) अने अपभ्रंश एम त्रण प्रयोजाई छे. क्रमाङ्क १, २, १३, २३, ३२ ए पांच रचनाओ संस्कृतमा छे. क्र. १०, ११, २७, २८, ३०, ३१, ३३ - ए रचनाओ अपभ्रंशमां छे. तो ते सिवायनी २२ रचनाओ प्राकृत भाषाबद्ध छे.
रचनाकार पासे साहित्य ज्ञान खूब ऊंचुं छे. भाषाबोध तथा शब्दभंडोळ पण विपुल मात्रामां छे. रजूआतनी शैली कहो के कसब, ते पण मर्मस्पर्शी छे. वैराग्यनो बोध आपवामां कर्ता खूब निपुण पण छे, भावुक पण. पोतानी निन्दा के स्वदोषवर्णन करतां पण तेमने जरा पण खचकाट थतो नथी. तेथी तेमनी प्रस्तुति एकदम सरल, भाववाही तथा असरकारक बनी जती जणाय छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org