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जून २००८
तेमनी बधी रचनाओ पर एक ऊडतो दृष्टिपात करीए :
रचना क्र. १ नुं शीर्षक छे
आत्मतत्त्वचिन्ताभावनाचूलिका.
आमां 'जीव' ने उद्देशीने आपवानो उपदेश छे तेना बीजा पद्यमां कर्ता चोखवट करे छे के "हुं वक्ता नथी. कवि नथी. सज्जनोनुं ध्यान खेंचाय तेवी कशी विशेषता पण मारी पासे नथी. हुं आमां नवी कोई ज वात कहेवानो नथी; छतां हुं जे कहुं ते (तमे) सांभळजो जरूर. "
३
आ ज मुद्दाने वधु ममळावता कर्ता त्रीजा - चोथां पद्योमां कहे छे: "काव्य ते व्युत्पत्ति करावतुं (व्युत्पन्न बनावनाएं), 'रस' - रूपी प्राणनुं मन्दिर, 'वक्रोक्ति' नुं धाम अने 'वैदर्भी' नामक भाषा - रीतिना नृत्यमण्डप - समान पदार्थ छे. शब्द - अर्थना सोहामणा गुंफ जेवा अने 'प्रसाद' रूप अमीरस छलकता आवा काव्यनी रचना तो गुरु-तुल्य कोईक व्यक्ति ज सहजभावे रची शके छे; अर्थात्, मारुं - मारा जेवानुं तेमां काम नथी; हुं तेवुं कांई (काव्य) रचवा शक्तिमान नथी ज." "परन्तु ज्यारे तत्त्वदृष्टिथी विवेक केळवाय छे, त्यारे आ बधुं ज (काव्यरचनादि ) वृथा भासे छे; केमके तेनी मददथी आपणुं चित्त कांई संसारनो उच्छेद करवा सक्षम नथी बनतुं ! (पद्य ५ ) "
प्रारम्भ ज एटलो उत्तेजक अने रसप्रद बन्यो छे के आखी रचना वांचवा भावक ललचाय ज.
पद्य १४ मां सूरः ना स्थाने सूरोऽ एम सुधारो कर्यो तो छे, पण ते उचित छे के केम, ते विषे मन साशङ्क छे. आ कृतिमां २१मुं पद्य मन्दाक्रान्ता छन्दमां छे.
२४ पद्यो धरावती आ कृतिमां क्यांय तेनुं शीर्षस्थ नाम गुंथायेलुं नथी. एम लागे छे के दरेक कृतिना आरम्भे तथा अन्ते, पोथीना लेखके, आमां लखेलां कृतिनामो लख्यां होवां जोईए. जोके घणी कृतिओमां कृतिनुं नाम गुंथी दीघेलुं जोवा मळे पण छे, अने तेवे घणे ठेकाणे श्री नाहटाजीए शीर्षक प्रयोज्यं होय तो ते बनवाजोग छे.
२.
बीजी रचनानुं नाम छे 'आत्मानुशास्ति' तेना अन्तिम श्लोकमा आ
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