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________________ १२ परिसाए पडिगयाए गोयमसामी वि छट्ठपारणए । सामि वंदिय पविसइ वाणियगामम्मि भिक्खट्टा || १०५ || पंचसमिओ तिगुत्तो हिंडतो गहियभत्तपाणो य । कोल्लागसंनिवेसम्मी गच्छंतो सुणइ जणवायं ॥ १०६ ॥ 'अत्थि इहं आणंदो अंतेवासी जिणस्स वीरस्स । संलेहणाइपुव्वं पडिवन्नो अणसणं विहिणा' ॥१०७॥ ततो गोयमसामी गच्छइ कोल्लागसंनिवेसम्मि | जत्थऽच्छइ आणंदो पोसहसालाए नियमत्थो ॥ १०८ ॥ इंतं गोयमसामि आणंदो पासिऊण साणंदो । भइ 'न सत्तो भंते ! तुम्ह सभीवं हमागंतुं ॥ १०९ ॥ ता इच्छाकारेणं आगच्छह इत्थ मह समीवम्मि | जेणाहं तुह पाए सिरसा वंदामि तिक्खुत्तो ॥ ११०॥ तो वंदित्ता पुच्छर आणंदो गोयमं जहा भंते ! गिहिणो गिट्टियस्स वि उप्पज्जइ ओहिनाणं किं ? ॥ १११ ॥ ता गोयमेण भणियं, 'उप्पज्जइ', सो भणइ जइ एवं तो । ममावि तमुप्पन्नं इइ भणिडं कहई पुव्व (व्वु)तं ||११२॥ अह भणइ गणाहिवई, आणंदा ! न त्थि एत्तिओ विसओ । गिहिणो ओहिन्नाणे, ता आलोयाहि एत्थ तुमं ॥११३॥ निंदण - गरहणपुवं पायच्छित्तं संपवज्जाहि । तो भइ आणंदो 'किं भंते ! जिणवरमयम्मि ||११४ || संताण वि अत्थाणं सब्भूयाणं च होइ पच्छित्तं ?" | 'न हु न हु सब्भूयत्थे, पच्छित्तं' गोयमो भइ ॥ २१५ ॥ जइ एवं तो भंते! गिण्हह तुब्भे वि इत्थ पच्छित्तं । जम्हा पेच्छामि अहं ओहिन्नाणेण इइ खित्तं ॥ ११६ ॥ तत्तो गोयमसामी संकाइ समन्निओ दुयं जाइ । सिरिवीरजिणं नमिउं आलोइय भत्तपाणं च ॥ ११७ ॥ आणंदसावयस्स य कहिऊणं ओहिनाणवुत्तंतं । पुच्छ 'पायच्छित्ती किं आणंदो उयाहु अहं ? ॥ ११८ ॥ Jain Education International अनुसन्धान ४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229271
Book TitleAnandadidas Uvasagkathao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrut Patel
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size603 KB
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