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जून २००९
सा वि हु रहमारोहिउं संतुट्ठा भत्तुणा समाइट्ठा । विहिणा वंदिय वीरं पडिवज्जइ सावयवयाई ॥९१॥ अहिगयजीवाऽजीवो आणंदो सावओ सभज्जो वि । मुणिजणदाणपसत्तो चउदसवरिसे अइक्कमइ ||१२|| अह पनरसम्मि वरिसे सो चिंतइ स्यणिचरिमजामम्मि । गिहि-सयण-सुहियकज्जेसु वावडो वीरजिणधम्मं ॥ ९३ ॥ नो सम्मं पालेत्तु (त्तुं) सत्तो ता गिहभरम्मि जिट्ठसुयं । संठविउं गंतूणं कोल्लागे सन्निवेसम्म ॥९४॥ पोसहसालं पडिलेहिऊण तह थंडिलाई विहिपुवं । अकयाकारियभोई गिहिपडिमाओ पवज्जिसं ||१५|| इय सिंचितिय बीए दिणम्मि समाविऊण सुहि - सयणे । जिट्ठसुए गिहि (ह) भारं संठवइ ताण पच्चखं ॥९६॥ कोल्लागसंनिवेसे सिरिवीरजिणंदधम्मपन्नत्तिं । पडिवज्जित्ता विहरइ पायं पडिवज्जियारंभो ॥९७|| एक्किारसपडिमाओ उवासगाणं विहीए फासिंतो । तवसोसियसव्वंगो जाओ चम्मट्ठिसेसतणू ॥ ९८ ॥ अह अन्नया विचितइ स्यणिविरामम्मि अस्थि मज्झ बलं । देहे परकूलमजजाओ (?) उट्ठाणवीरियं वा वि ॥९९॥ ताव अपच्छिमसंलेहणाए संलिहियसयलदेहस्स । पडिवन्नाऽणसणस्स य, सेयं विहरित्तए मज्झ ॥ १०० ॥ पडिवन्नाऽणसणस्स य विसुज्झमाणासु भाव-लेसासु । उप्पन्नमोहिनाणं ति पिच्छई खित्तमेवं सो ॥ १०१ ॥ पुवेण दाहिणेणं अवरेणं लवणसायरस्संऽतो । पंचेव जोयणसये पिच्छइ हिमवंतमुत्तरओ ॥१०२॥ उड्ढं जा सोहम्मं अहे य रयणप्पभाए पुढवीए । लोलुय- अच्चुयनरयं चउरासि वाससहस्सठिइं ॥ १०३ ॥ अह वाणियगामबहिं दूइपलासम्मि चेइए रम्मे । बहुदेसे विहरिता वीरजिणिदो समोसरिओ ॥ १०४ ॥
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